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पूर्व रंग
श्रवणयोः साक्षात्क्षरतोऽमृते वेद्यास्तेऽष्टसहस्रलक्षणधरास्तीर्थेश्वराः सूरयः ॥२४॥ इत्यादिका तीर्थङ्कराचार्यस्तुतिः समस्तापि मिथ्या स्यात् । ततो य एवात्मा तदेव शरीर पुद्गलद्रव्यम् । इति ममैकान्तिको प्रतिपत्तिः ॥२६॥ शरीरं-प्रथमा एक० । तीर्थकराचार्यसंस्तुति:-प्रथमा एक । च-अव्यय । एक अव्यय । सर्वा-प्रथमा ए० । अपि-अव्यय । भवति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एक क्रिया । मिथ्या--अव्यय । तेन-तृतीया एक० । तुअन्यय । आत्मा-प्रथमा एक० । भवति-वर्तमाल लद अन्य पुरुष एक क्रिया। देह:-प्र० एकवचन ।।२६॥ देहादि संश्लिष्ट पदार्थके स्तवनसे प्रभुस्तवन मान लेना मिथ्या है।
दृष्टि---- १-परकर्तृत्व व्यवहारादि परसम्बंधपर्यन्तव्यवहार (१२६-१३५) । (२) संश्लिष्टविजात्युपचरित असद्भूतव्यवहार (१२५)।।
प्रयोग-प्रभुके देहातिशय आदिको जानकर प्रभुके गुणोंको निर्मलतापर दृष्टि जाना चाहिये कि धन्य है प्रभुत्वविकासको जिसका निमित्त पाकर देहादिमें भी अलौकिक अतिशय हो जाता है । उपचारस्तबनोंमें इस प्रकार प्रभुत्वविकासपर ही दृष्टि होनी चाहिये ॥२६॥
वह नयविभाग कैसा है उसको गाथा द्वारा बतलाते हैं---[ध्यपहारनयः] व्यवहारनय तो [भाषते] ऐसा कहता है कि [जीवः च देहः] जीव और देह [एकः खलु] एक ही [भवति] है [च] और [निश्चयनयस्य] निश्चयनयका मत है कि [जीवः देहः तु] जीव और देह-~-ये दोनों [कदापि] कभी [एकार्थः] एक पदार्थ [न] नहीं हो सकते ।।
तात्पर्य-व्यवहारनयके दर्शन में जीव और देह एक है, किन्तु निश्चयनयके दर्शनमें जीव और देह कभी भी एक नहीं हो सकते । क्योंकि प्रभु व देह व्यवहारमें एकक्षेत्रावगाही है, परन्तु सत्त्व, स्वरूप अलग-होनेसे वे दोनों एक वस्तु नहीं ।
टोकार्थ-जैसे इस लोकमें सुवर्ण और चांदीको गलाकर मिलानेसे एक पिंडका व्यवहार होता है, उसी तरह अात्माके और शरीरके परस्पर एक जगह रहनेको अवस्था होनेसे एकत्व का व्यवहार होता है । इस प्रकार व्यवहारमात्रसे हो प्रात्मा पोर शरीरका एकत्व है, परन्तु निश्चयसे एकत्व नहीं है; क्योंकि पीले स्वभाव वाला सोना है और सफेद स्वभाव वाली चांदो है, उनको जब निश्चयसे विधारा जाय तब अत्यन्त भिन्नता होनेसे एक पदार्थको प्रसिद्धि है, इसलिये अनेकरूपता ही है । उसी तरह प्रात्मा और शरीर उपयोग तथा अनुपयोग स्वभाव वाले हैं । उन दोनोंके अत्यंत भिन्नपना होनेसे एक पदार्थपनेको प्राप्ति नहीं है, इसलिये अनेकता ही है । ऐसा यह प्रकट नयविभाग है । इस कारण व्यवहारनयसे ही शरीरकी स्तुति करनेसे मात्माको स्तुति हो सकती है।
भावार्थ-व्यवहारनय तो प्रात्मा और शरीरको एक कहता है और निश्चयनय एक