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पूर्व रंग लक्षणं जीवद्रव्यं पुद्गलद्रव्योभयननित्यानुपयोगलक्षणं पुद्गलद्रव्यं च जीवद्रव्यीभवद् उपयोगानुपयोगयोः प्रकाशतमसोरिक सहवृत्तिविरोधादनुभूयते । तत्सर्वथा प्रसीद विबुध्यस्व, स्वद्रव्यं ममेदमित्यनुभव । प्रपि कथमपि मृत्वा तत्त्वकौतूहली सन अनुभव भव मूर्तेः पाश्ववर्ती मुहूर्त । पृथगथ विलसंतं स्वं समालोक्य येन त्यजसि झगिति मूर्या साकमेकत्वमोहं ।।२३।।२३-२४-२५।। स:-प्रथमा एक० । पुद्गलद्रव्योभूत:-प्रथमा एक 01 जीवत्वं--प्रथमा एक । आगत-प्रथमा एक० कृदन्त आ-मत, इतरत्-प्रथमा एक । तहि--अव्यय । शक्त:-प्रथमा एक० कृदन्त । वक्तुं-प्रयोजने अव्यय कृदन्त । यत्-प्रथमा एक० या अव्यय । मम-पष्ठी एक । इदं- प्रथमा एक० । पुद्गलं--प्रथमा एक० । द्रव्यम्-- प्रथमा एक०॥२३-२४-२२॥ मिथ्यात्वका नाश करना व सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति होना तो बहुत ही सुगम है ।
प्रसंगवियर--अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि अज्ञानी जीवका परिचय क्या है ? प्रब यहाँ उस अज्ञानी जीवको समझानेके लिये उद्यम हो रहा है ।
तथ्यप्रकाश-(१) निमित्तका सविधान होनेपर अस्वभावभाव त्वरित होते हैं । (२) स्वभावभाव तिरोहित होनेसे विवेकज्योति अस्त हो जाती है। (३) विवेकज्योतिरहित अज्ञानी भेदज्ञान न होनेसे अस्वभावभाव (विकारभाव) को स्वीकार कर लेता है याने मान्यता में अपने कर लेता है । (४) ज्ञानी जानता है कि कोई द्रव्य अन्य द्रव्यरूप कभी नहीं हो सकता है, अतः अपनेको ज्ञानस्वरूप ही स्वीकार करता है ।
सिद्धान्त – (१) निमित्तसानिध्यमें उपादान तदनुरूप परिणमन करता है । (२) अपने को ज्ञानमात्र अनुभव कर लेनेपर निमित्त और नैमित्तिक भाव विघटने लगते हैं ।
दृष्टि- १-उपाधिसापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिकनय (२४) । २-उपाध्यभावापेक्ष शुद्ध द्रव्याथिकनय (२४५)।
प्रयोग – अपना सर्वस्व ज्ञानस्वरूप, उपयोग निरखकर उसीके प्रति अभिमुख रहे, कल्याण के लिये जो होना होता है वह स्वयं होगा ॥२३-२४-२५।।
अब अप्रतिबुद्ध कहता है कि [यदि] जो [ीयः] जीव है वह [शरीरं न] शरीर नहीं है तो तिथंकराचार्यसंस्तुतिः] तीर्थकर व प्राचार्योकी स्तुति [सर्वापि] मब हो [मिभ्या भवति] मिश्या हो जाती है [तेन तु] इसलिए हम समझते हैं कि [प्रात्मा] प्रात्मा [बेहः चैव] यह देह ही [मबति] है।
तात्पर्य--अज्ञानी जीव दिखने वाले परमौदारिक शरीरको ही भगवान समझता है ।
टोकार्थ---यदि जो आत्मा है वह ही पुद्गलद्रव्यस्वरूप शरीर न हो तो तीर्थंकरों व प्राचार्योकी जो स्तुति की गई है वह सब मिथ्या होजायगी । वह स्तुति इस तरह है