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________________ समाधितंत्र दोनोंका एक क्षेत्रावगाहरूप सम्बन्ध है । आत्मा और शरोरके भेदको ठीक न समझने वाला बहिरात्मा ही ऐसे भ्रमका शिकार होता है ॥११॥ ८० अन्तरात्मा किं करोतीत्याह- बृष्टभेदो यथा दृष्टि पङ्गोरन्धेन योजयेत् । तथा न योजयेद्द है वृष्टात्मा दृष्टिमात्मनः ॥९२॥ टीका--दृष्टभेद: पंग्बन्धयोः प्रतिपन्नभेदः पुरुषो यथा पंगोदृष्टिरवे न योजयेत् । तथा आत्मनो बृष्टि बेहेन योजयेत् । कोऽसौ ? वृष्टात्मनः देहभेदेन प्रतिपन्नात्मा ॥२॥ संयोगकी ऐसी अवस्था में अन्तरात्मा क्या करता है, उसे बतलाते हैंअन्वयार्थ - ( दृष्टभेदः ) जो लंगड़े और अन्धे मेदका तथा उनकी क्रियाओंको ठीक समझता है वह ( यथा ) जिस प्रकार ( पंगोदु ष्टि ) लंग की दृष्टिको अन्धे पुरुष में ( न योजयेत् ) नहीं जोड़ता - अन्धेको मार्ग देखकर चलने वाला नहीं मानता - ( तथा ) उसी प्रकार ( दृष्टात्मा ) आत्माको शरीरादि परपदार्थों से भिन्न अनुभव करनेवाला अन्तरात्मा ( अत्मनः दृष्टि ) आत्माको दृष्टिको—उसके ज्ञानदर्शनस्वभावको ( देहे ) शरीर में ( न योजयेत् ) नहीं जोड़ता है-शरीरको शाता दृष्टा नहीं मानता है । भावार्थ --- जिस पुरुषको अन्धे और लँगड़ेका भेद ठीक मालूम होता है ऐसा समझदार मनुष्य जिस प्रकार दोनोंके संयुक्त होनेपर भ्रम में नहीं पड़ता - अन्धेको दृष्टिहीन और लँगडेको दृष्टिवान् समझता हैउसी प्रकार भेदविज्ञानी पुरुष आत्मा और शरीर के संयोगवश भ्रममें नहीं पड़ता - शरीरको चेतनारहित जड़ और आत्माको ज्ञानदर्शनस्वरूप हो समझता है, कदाचित् भी शरीरमें आस्माकी कल्पना नहीं करता ||१२|| बहिरन्तरात्मनोः काऽवस्था भ्रान्तिः का वाऽभ्रान्तिरित्याह-सुप्तोन्मत्तावस्यैव विभ्रमोऽनात्मदशिनाम् । विभ्रमोऽक्षीणदोषस्य सर्वावस्थाऽस्मदर्शिनः ॥९३॥ टीका -- सुप्तोन्माद्यस्थैव विभ्रमः प्रतिभासते । केषाम् ? अनारमवशिनां यथावदात्मस्वरूपपरिज्ञानरहितानां वह्निरात्मनाम् । आत्मनोऽन्तरात्मनः पुनर
SR No.090404
Book TitleSamadhitantram
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages105
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size2 MB
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