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संभाषितम
२. बशभक्ति___कान्यकी दृष्टिसे सभी भक्तियां बहुत ही सरस और गम्भीर हैं । इन भक्तियोंके सम्बन्धमें टीकाकार पण्डित प्रभाचन्द्रने प्राकृत सिद्धिभक्तिके अन्तमें सूचना दी है कि संस्कृतिको सारी भक्तियाँ पूज्यपादकृत हैं और प्राकृत भाषाकी भक्तियाँ आचार्य कुन्दकुन्दकी बनायी हुई हैं। ३. तत्वार्थवृत्ति-(सामिति)
यह पूज्यपादकी महनीय कृति है। इस तत्वार्थवृत्तिको सर्वार्थसिद्धि भी कहा गया है। सर्वार्थसिद्धि उमास्वामीकृत तस्वार्थ सूत्र पर लिखी गयी गामय रचना है। यह मध्यम परिमाणकी विशद वृत्ति है। इसमें सूत्रानुसारो सिद्धान्तके प्रतिपादनके साथ-साथ दार्शनिक विवेचन भी है। तत्त्वार्थसूत्रकी वृत्ति होते हुए भी इस प्रन्थमें अनेक मौलिक विशेषताएं दिखाई देती हैं। ४. समाधिसंत्र
इसमें कुल १०५ श्लोक हैं । इसका दूसरा नाम समाधिशतक भी है। इसका विषय अध्यात्म है। ग्रन्थका मूल नाम समाधिसंत्रम् है, इसको सूचना स्वयं लेखकने इसके अन्तिम श्लोकमें दी है। वस्तुतः यह अन्य पूज्यपादको स्वतंत्र रचना है। ५. इष्टोपदेशे
इसमें कुल ५१ श्लोक हैं | इसका विषय स्वरूप सम्बोधन है । इसकी शैली सरल और प्रवाहमय है । अन्यका नाम इष्टोपदेश है जो आपाय पूज्यपादने स्वयं अन्यके अन्तिम पद्यमें बताया है। इस पथके अनेक पच कुन्दकुन्द कृत समयपाहुद्धके रूपान्तर या भावान्तर प्रतीत होते हैं । इस अन्यके अध्ययनसे आस्म-शक्तिका विकास होता है। साधकके लिए आत्म-साधनामें इससे बहुत सहायता मिलती है। ६. जमिन्द्रव्याकरणम्--
यह आचार्य पूज्यपादको अन्यतम मौलिक कृति है। प्राचीन कालसे यह ग्रंथ इसी नामसे जाना जाता रहा है।
जैनेन्द्र व्याकरणके दो सूत्रपाठ उपलब्ध हैं-एकमें तीन हजार सूत्र हैं और दूसरेमें लगभग तीन हजार सात सौ। स्व. श्रद्धेय पंडित नाथूरामजी प्रेमीने यह निष्कर्ष निकाला है कि देवनन्दि या पूज्यपादका बनाया हुआ सूत्रपाठ यही है जिस पर अभयनन्दिने अपनी वृत्ति लिखी है।