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सज्जनचित्तजभ nown ऐसे पाँच विशेषणों से विशिष्ट वीर जिनेन्द्र को ग्रंथकर्ता ने नमस्कार किया है । इन पाँच विशेषणों में यह विशेषता है कि आदि का प्रथम विशेषण हितो पढे शित्व का वाचक है, तत्पश्चात तीज विशेषण वीतरागता के वाचक हैं और अन्तिम विशेषण सर्वज्ञता का बोधक है।
आचार्य श्री मल्लिषेण जी ने प्रतिमा की है कि मैं सजान शिवल्लम | ग्रंथ का संझोप पद्धति का अनुशरण करते हुए व्याख्याज करूंगा।
__ मुनि की शोमा चरित्र से है रात्रिश्चन्द्रमसा विनाञ्जनिवहै!भाति पद्माकरो, यद्वत्पण्डितलोकवर्जितसभा दन्तीव दन्तं विना। पुष्पंगन्धविवर्जितं मृतपतिः स्त्री चेह तव्दन्मुनिश्चारित्रेण विना न भातिसततं यद्यप्यसौशास्त्रवान्।।२।। अन्वयार्थ :
(यदत्) जिस प्रकार (चन्द्रमसा) चन्द्रमा के (विला) बिना (रात्रिः) रात, (अञ्ज निवहे बिना) कमलों के समुदाय के बिना (पदमाकरः ) तालाब, (पण्डितलोकवर्जितसभा) विद्वानों से रहित सभा, (दन्तं विना दन्ती) दॉलों के बिना हाथी, (गन्धविवर्जितं पुष्प) सुगन्ध से रहित पुष्प, (मृतपतिः स्त्री) जिसका पति मर चुका है, ऐसी स्त्री (इह) इसलोक में (न भाति) शोभा को प्राप्त नहीं होती (तल्दत्) उसीप्रकार (मुनिः) मुनि (सततं) हमेशा (चारित्रेण विना) चारित्र के बिना (न भाति) शोभित नहीं होते (यद्यपि) भले ही ते (शास्त्रवान) शास्त्रों के ज्ञाता (असो) क्यों न हो ? अर्थ :
जैसे चन्द्रमा के बिना रात, कमलों के समूह से रहित सरोवर, विद्धानों के बिना सभा, दंतविहीन हाथी, गन्ध से रहित पुष्प पति के मर जाने पर स्त्री इसलोक में शोभित नहीं होती उसीप्रकार चरित्र के बिना मुनि की शोभा नहीं होती. भले ही वे मुनि कितने भी श्रुतसम्पन्न क्यों न हों।