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घउत्यो सग्गो
मपुरहि मजाई मिण संघियई। मोठंगणे गोविउ सूहबउ । महरहिसाउ वि वूहबत ॥ गोठंगणे गोवाल वि कुसस । भारहि कापरसव पर विला । गोट्लंगणे णोली कावि किय । महरहि गज उवि पाहं सिय ॥ गोठे खोललाई वि ममोहाई।
महरहि रोचंति णाई घरई॥ घसा-महुरारि सुण्णी जाय उ अउपाणी जहिं ण पयट्टा का वि किया। धणकणय-सउ पणयं गोउलं रवण्ण उं जाहि पारायणु तहि जि सिय ॥१३॥
वणु-मद्दणु गंवणु कण्ड जहिं । वणिज्जइ गोउल काई तहि ॥ हरि वड्डइ केण वि कारणेण । बामयरंगुट्ठ-रसायणेण ॥ बालत्तणे बालकोल कर। जो कुक्कद सोग्गतु ओसरह ॥ गम्मरण पाइस अटुगह। 'जाएण विणमाह वस दुसह ।। मासगह बारह ते वि जिय। परिसगह तेरह खपहो पिय ।। गारामणु चतु' णिसापरेहि। दुत्थेहिं गुरु चंदिवायरेहि ॥
पडह वायइ घंटारज कर। भरा पड़ा है, मथुरा में मद्य का भी संघान नहीं हो पाता। गोठ के आँगन में गोपियाँ सुभग हैं, मथरा में वेश्याएँ भी दुर्भग हैं। गोठ के आँगन में पवा-न-बाल भी कुशल हैं, मथुरा में बनियों के बेटे भी जैसे विकल हैं । गोठ के आँगन में कोई अनोखी किया है, मथुरा से जैसे शोभा उहकर चली गई है । गोठ में कोठडियो भी सुदर हैं, मथुरा में मानो घर रो रहे हैं।
पत्ता -मथुरा नगरी अपूर्ण और सूनो हो गई, वहाँ कोई भी क्रिया नहीं हो रही है, जबकि धनस्वर्ण से सम्पूर्ण गोकुल सुन्दर है। जहाँ नारायण है वहीं लक्ष्मी निवास करती है ॥१३॥
दानवों का मर्दन करनेवाले कृष्ण जहां हैं, उस गोकुल वा किस प्रकार वर्णन किया जाए ? दाएँ अंगूठे के रसायन से किसी भी प्रकार बढ़ते हैं। बचपन में बालक्रीड़ा करते हैं। जो ग्रह पास पहुंचता है वह भाग जाता है। गर्म में रहते हुए उन्होंने आठ ग्रहों का नाश कर दिया, उत्पन्न होने पर दुःसह वा ग्रहों का नाश कर दिया। माह के जो बारह ग्रह है, उन्हें भी जीत लिया । वर्ष के तेरह ग्रह नाा को प्राप्त हुए। निशाचरों ने नारायण को छोड़ दिया, दुष्ट गुरु १.-जारण जि णगह दस दुसह । २. अ-बत्तु ।