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[सयंभूएधकए रिटुणेमिचरिए
युच्च अणंग रूवाणु कारि। परिणम विजाहर कुमारि ।। नीलजस पामें पई बिट्ट। मायंगिणीवेसे पुरे पाच ।। ण समिन्छइ जइ तो तंफरेहि।
णिय विजापाणि हरिवि एहि ॥ घत्ता-जाएघि दूजियाए सामिणि केरउ आएसु किउ । सुख सुत्तउ जि कुमारु बेयकमहीहर गवर पिउ ॥११॥ ।
परिणिय नीसंजस णामय । पुणु सोमच्छि पुणु भयणवेय॥ पुणु भिल्लहो तणया जरापत्त । सहि अरकुमार जग्पष्म पुत्त ॥ पावंतु लभ परिभामिउ ताम। बरिससयई सत्तासयाइं जाम ।। गउ णरवर णवर अरिटुणयक। तिलकेसहो कारणे गं सयर। तहि परबर गामें लोहियान। जस फेरउ पिम्मल ब्रह्मपालु। सहो परिणि सुमित्त महाणुभाव । भुभंगोहामिय मयणचाव॥ तहो गंवणुणाम हिरणमाहु । सुपरोहिणिहे बट्ट विवाह॥
आवत्तु सयंवरू मिलियराय। अनुकरण करने वाले उससे कहा जाए कि तुम उस नोलेजसा नाम की कुमारी से विवाह कर लो जिसे तुमने मातंगिनी के रूप में नगर में प्रवेश करते हुए देखा है । यदि वह नहीं चाहता है, तो तुम ऐसा करना कि अपनी विद्या के हाथ उसका हरण करके उसे ले आना।
उत्तर. उसी बूती ने जाकर कुमारी स्वामिनी का आदेश किया, वह सुख से सोते हए कुमार को सिर्फ विजयाध पर्वत पर ले आयी॥११॥
उसने नीलजसा नाम की विद्याधरबाला से विवाह किया, फिर सोमलक्ष्मी और मदनवेगा से । फिर भिल्लराज की पुत्री जरा को प्राप्त हुई। उससे जरत्कुमार पुत्र उत्पन्न हुआ । इस प्रकार लाभ प्राप्त करता हुआ कुमार तब तक घूमता रहा, जबतक कि उसे सात सौ वर्ष नहीं हो गए। वह नरश्रेष्ठ सिर्फ अरिष्टनगर पहुंचा, जसे तिलकेशा के लिए सगर पहुंचा हो। वहाँ लोहिताम नाम का राजा था जिसके दोनों पक्ष निर्मल थे । महान् भाववाली उसकी सुमित्रा नाम की पत्नी यो, जिसने अपनी भ्रूभंगिमा से कामदेव के धनुष को नीचा दिया था। उसके पुत्र का नाम हिरण्यनाभ था। उसकी पुत्री रोहिणी का विवाह हाना था, इसलिए
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