________________
प्रधान सम्पादकीय
स्वयंमदेव (आठवीं शताब्दी) अविवाद रूप से अपभ्रंश के सर्वश्रेष्ठ कवि माने गये हैं। सनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए अपभ्रंश के ही परवतां करि पुष्पमत में उन्हेयास, मास, कालिदास, भारवि, बाण आदि प्रमुख कवियों की श्रेणी में विराजमान कर दिया है। भारतीय संस्कृति और साहित्य के जाने माने समीक्षक राहुल सांकृत्यायन ने अपभ्रंश भाषा के काव्यों की आदिकालीन हिन्दी काव्य के अन्तर्गल स्थान देते हुए कहा है- "हमारे इसी युग में नहीं, हिन्दी कविता के पांचों युगों के जितने कवियों को हमने यहां संगृहीत किया है, यह नि:संकोच कहा जा सकता है कि उनमें स्मयंभू सबसे बड़े कवि थे। वस्तुत: वे भारत के एक दर्जन अमर कवियों में से एक थे।" ये 'महाकवि', 'कविराज', 'कविराज-चत्रावर्ती आदि अनेक उपाधियों से सम्मानित थे।
स्वयंभूदेव ने अपभ्रंश में 'परमचरित' लिखकर जहाँ रामकथापरम्परा को समृद्ध बनाया है वहीं 'रिटमिचरिउ' प्रबन्धकाव्य लिखकर कृष्ण-काव्य की परम्परा को आगे बढ़ाया है। चूसरे पाब्दों में हम कह सकते हैं कि प्रबन्धकान्य के क्षेत्र में स्वयंभू अपभ्रंश के आदि कवि हैं। वह अपभ्रंश के रामकथात्मक काव्य के यदि 'वाल्मीकि हैं तो कृष्ण काव्य के 'व्यास' हैं। अपभ्रंश का कोई भी परवर्ती कवि ऐसा नहीं है जो स्वयंभू से प्रभावित न हुआ हो।
स्वयंभू ने अपनी रचनाओं में अपने प्रदेश या जन्मस्थान वा स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है। स्व. डॉ. हीरालाल जैन का मत था कि हरिवंशपुराण के कर्ता जिनसेन तथा आदिपुराण के कर्ता जिनसेन की तरह कवि स्वयंभू भी दक्षिण प्रदेश के निवासी रहे होंगे क्योंकि उन्होंने अपने काव्यों में धनंजय, घवलइया और वन्दइया आदि जिन आश्रयदाताओं का उल्लेख किया है चे नाम से दक्षिणाश्य प्रतीत होते हैं। स्व. पं. नायराम प्रेमी का विचार था कि स्वयंभू कवि पुष्पदन्त की तरह ही बरार की तरफ के रहे होंगे और वहाँ से थे राष्ट्रकूट की राजधानी में पहुंचे होंगे। जो भी हो, स्वयंभू की कृतियों में ऐसे अनेक अन्तरंग साक्ष्य मिलते हैं जिससे उन्हें महाराष्ट्र मा गोदावरी के निकट के किसी प्रदेश का माना जा सकता है।
स्वयंभू की प्रस्तुत कृति 'रिट्ठणेमिपरिज' का दूसरा नाम 'हरिवंशपुराण' भी है। अठारह हजार श्लोक प्रमाण यह महाकाव्य ११२ सन्धियों (सगों) में पूर्ण होता है। इसमें तीर्थकर नेमिनाथ के चरित्र के साथ श्रीकृष्ण और पाण्डवों की कथा का विस्तार से वर्णन है । कथा का आधार सामान्यत: 'महाभारत' और 'हरिवंशपुराण' रहा है लेकिन समसामयिक, राजनैतिक और सामाजिक चित्रांकन हेतु घटनाओं में यथास्थान अनेक परिवर्तन भी किये हैं । उससे प्रस्तुत काव्य में मौलिकता आ गयी हैं। काव्य में घटना बाहुल्य तो है ही, काव्य का प्राचर्य भी जमकर देखने को मिलता है। इसमें कृष्ण-जन्म, कृष्ण की बाललीलाएँ, कृष्ण-विधाकथा, प्रद्युम्न की जन्म-कथा और तीर्थंकर नेमिनाथ के चरित्र का विस्तार से घर्णन किया गया है। साथ ही, कौरवों एवं पाण्डवों के जन्म, बाल्यकाल, विक्षा, उनका परस्पर वैमनस्य, युधिष्ठिर द्वारा द्यूत