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________________ [सयंभूएवकए रिटुमिचरिए अवरेणकेण फेणवि फिकरेंण। कंठक्खलियमखर अंपिरेण ॥ अखिया कालोत्तर संवरहो। धयघषल-छत्त-छपयंवरहो ॥ परमेसर सेण्ण-परज्जियउ। बइबसपुरबाहेण विसस्जियउ॥ तो राएं अमरिस-कुखएण। सामंत वेवि जसलुद्धएण।। ते भूमिकप महिकंपभड। समुहउ सतरंग सहत्यिह॥ पदविय पधाइय भिडियरणे । णं पवण हुआसण सुक्कवणे ॥ जे वम्मह मारहुं भणेवि गय । ते विज्जापण्णई सयल हय ।। घत्ता-जिणिव तिवारउ वइरिस लु अण्णहो वि दिष्टि पुर्ण टोइय। जमु तिहि कषलाह अघाउवि शंकर पत्य जोइपर ।।१।। पडिवत्त कालसंवरहो गया। तामिय असेस सार्मत हया ॥ एहि विहि कज्जहं एषकु करे । मह कहि यि णासु आह भिड समरे॥ बलु-सयतु कुमार णविउ । पेयाति-पंसे पटुधिउ॥ तं णिसुर्णेवि परवइ गीढभउ । तहे कंत्रणमालहे पास गउ ॥ खोयहि पनि व्यक्ति माहू। कण्ठ से लड़खड़ाते हुए अक्षर बोलने वाले किसी एक और अनुचर ने, ध्वजों और बबल छत्रों से आकाश को आच्छादित करनेवाले कालसंबर से कहा, 'हे परमेश्वर, सैन्य पराजित हो गया । और वह यमपथ पर भेज दिया गया है।" तब, असहिष्णुता से क्रुद्ध होते हुए, यश के लोभी राजा ने रथ, अश्व और गजघटा के साथ भूमिकंप और महीप योद्धा भेजे। वे दौड़े और युद्ध में भिड़ गए, मानो सूखे हुए जंगल में पवन और आग हो । जो कामदेव को मारने की कहकर गये थे, वे सब प्रज्ञप्ति विद्या के द्वारा आइत हो गये। घसा-इस प्रकार तीन बार शत्रुबल को जीतकर उसने फिर दूसरे पर दृष्टि डाली। तीन कौर से संतुष्ट नहीं होते हुए अम ने मानो चौथे कौर की प्रतीक्षा की ॥१शा कालसंवर के पास फिर समाचार गया- हे स्वामी, सभी सामन्त मारे गये। अब दो कामों में से एक कीजिए, या तो केही भाग जाइये या फिर युद्ध में लडिए । कुमार ने सारे सैन्य को नष्ट कर दिया और उसे यम के रास्ते लगा दिया।" यह सुनकर, राजा कालसंघर डरफर मचनमाला के पास गया (और बोला)-'मुझे शीन प्राप्ति विद्या दो जिससे मैं शत्रु
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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