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[सयंभूएवकर रिट्ठणेमिचरिए
बहुविवसहि भिक्खराय-सपएँ। परूनऐ बलातोयधुयएँ ॥ जो पन्छिम-पहरे णिरिक्णिय सो सिविणरविणमुहि अक्सियउ ।। गारायण विट्टु विमाग मई। हरि मबह लहेवळ पुस पर। विजाहर-जायव-कुलतिलाउ। सोहरगति-गुणगणविलास ॥ भामए वि एम सिविणर कहिच । सुज होसइ एक्कोयर साहिल अह दिणे हि महंतेहि सोहलेोह । णवमाह-पण्ण-सहुंचोहलेहि ।। एक्काह दिणि वेधि पसूइयर । पवियउ गिय-णिय इयर ॥ पहिलारउ तुद्ध पड उद्विगएँ। कमलोयर-बलमंतट्टियए॥ मसाविउ रुप्पिणिस्यए। अवरऍवि सिरंतरि हस्यए। अउणंद-गंदणु जाउ त।
बिहसंतु अगंतु तुरंत गर॥ पत्ता–पहिलड पेक्खंतहो पुत्तमहं जं सुख तहिं बामोयरहो। पक्कक्ककित्ति बद्धावणए दुषकर तं भरहेसरहो ॥७॥
पेक्षेप्पिषु रुप्पिणि-सुयवयण।
गउ समचहामधद महमहम् ॥ बहुत दिनों बाद, चौथे दिन जल से स्नान करनेवाली रजस्वला भीष्मराज की पुत्री रक्मिणी ने रात्रि के पश्चिम प्रहर में जो सपना देखा वह सवेरे बताया, "हे नारायण, मैंने विमान देखा है।" श्रीकृष्ण कहते हैं, "तुम पुत्र प्राप्त करोगी जो विद्याधरों और यादवों के कुलों का तिलक, सौभाग्यराशि और गुणसमूह का घर होगा।" सत्यभामा देवी ने भी इसी प्रकार सपना बताया। (कृष्ण ने कहा) भाई सहित एक पुत्र होगा । बहुत दिनों बाद बहुत बड़े सोहरों और वोहलों के साथ नो माह पूरे हुए । एक ही दिन दोनों ने पुत्रों को जन्म दिया और उन्होंने अपनी-अपनी दतियों को भेजा । उठने पर स्वामी (कृष्ण) के जिनमें कमल चिह्न हैं ऐसे चरणों के निकट बैठी हुई, रुक्मिणी की दूती के बधाई देने पर पहले सन्तुष्ट हुए। दूसरी दूती ने सिर के पास (कहा), "आपकी जय हो, आप प्रसन्न हों, आपके पुत्र हुआ है।" हंसते हुए श्रीकृष्ण तुरन्त गये।
घता—पहले पहल पुत्र का मुख देखते हुए कहा दामोदर को जो सुख हुआ, वह पक्ररत्न और पुत्र अर्ककीर्ति की बधाई में भरतेश्वर को भी कठिन पा ॥७ पक्मिणी के पुत्र का मुख देख कर मधुसूदन सत्यभामा के पास गये। उस अवसर पर दृढ़