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________________ दहमो सग्गो] तो मह सोहाग देहि अचलु। कुसवत्तिहे हबह महालु ।। घसा---परमेसरि अधिष्णु होइ म आणबटिचछज महुमणु । सोसु व आरिय पायवडिउ 'पोदव्य-पडिउ बिह थेरपण ।।५।। जी एम " अभिय। तो मायवगाहें विहस किय॥ मायण्ही फेहि अप्पाणिप। एह रुपिणि देवय कहिं सणिय ।। विमाहरि तुई शब-यहूडियो। फिट गमिय सवत्तिहे साहजियहे ।। हरिलेष्टु सणेवि तणु-तणुहिय । सच्चो बप्पिणि पारहिं पड़िय ।। तहि अवसरि रिउ-मइ-मोहर्षण । पछुविउ लेहु दुजोहर्णण ॥ महएबिहि विहि वि पलंघभुज । जो उम्पनेसह परमसुउ ॥ तहो तणय वेसु हज अप्पणिय । संभावण एह महसगिय ॥ मंचायणु कोहल सममोहरेंहि । उपणयषणपीण-पोहोहि ॥ पसा--उत्पामो सुयहो पाहल्लाहो कुश्व-तणय परिणताहो । पिपुसी सीस मुरिएण हिहि ठवेषि व्हताहो ॥६॥ हो तो अचल सौभाग्य यो और मेरी कुल्लित गौत या दुर्भाग्य का महाफरल दो। पत्ता--हे परमेश्वरी, मधुसूदन प्रतिदिन मेरी आशा के माननेवाले हों। जिस प्रकार शिष्य आचार्य के पर पड़ता है, या जिस प्रकार श्रद्धा के स्तन प्रौढ़ता से प्युप्त हो जाते हैं, उसी प्रकार वे मेरे पैरों में पड़े रहें । जब सुन्दरी सत्यभामा इस प्रकार कहती हुई स्घित थी, तो यादवनाथ ने उपहास किया, "तुम अपनी मृगतृष्णा छोड़ दो, यह रुक्मिणी है, पेशी कहाँ की? हे विद्याधरी, तुमने छोटी नबवयू अपनी सौत को क्यों नमन किया ?" श्रीकृष्ण का उपहास सुनकर छोटी दक्मिणी सत्यभामा के पैरों पर गिर पड़ी। उस अवसर पर शत्रु की मति का मोहन करनेवाले दुर्योधन ने लेख भेजा कि दोनों महादेवियों (सत्यभामा और कृत्रिमणी) में से जिसके लम्बी बाहुओंवाला पहला पुत्र उत्पन्न होगा उसे अपनी कन्या दूंगा, यह मेरा संकल्प है। तब जिनके उन्मत और स्थूल प्रयोघर है ऐसी उन सुन्दर देवियों में यह बात हुई (यह तय हुआ)। ___घत्ता --- पहले उत्पन्न हुए, दुर्योधन की कन्या से विवाह करते हुए स्नान करनेवाले पुत्र के नीचे, निपूती मुण्डित सिर से रखी जायेगी ।।६।। १.--पोरस पविउ । २. .....एव चयन्ति ।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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