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________________ मोग्गो] मवश्यि कष्ण कुठि लग्ग पट्ट । रण जाज परोप्पर सुव्विसहु ॥ पालि सेण्णु जंबुले जिउ जंबुमालि सोराज ॥ महचंड गएण रणुज्अएण । जंब गोविंद दुज्जए ॥ विजाहरि परिणिय जंबवइ । पडसारिय पुरवरे दारवइ ॥ अपर्णा विणि घणानंदयरे । सुमनोहरे वीयसोपणयरे ॥ पहुचंबमे चंद्रम तिथ । किय कष्णहे तेहि विवाह-किय ॥ आपणु विष्णु गोरि हरिहे । 'यि दाराव - पुरि ॥ धत्ता-लक्खण सुसीम गंधारितिय सस लहुयारी रेवहहे । उमाष परिणिय महमण पुष्ण मष्णोरह वेबइहे ॥ ३॥ अट्टमहाएहि सहिय । वि उरसिरिए परिहउ ॥ भुज्जं रज्जु थिउ मट्टमहषु । - घण्ण-सु-समिद्ध जणु ॥ घरे-घरे णं काम सबइ । धरे-घरे णं घण व घरे-घरे वसुहार गाई प वह६ ॥ धरे - घरे चितिय समावच्छ ॥ {११७ गये और कन्या का अपहरण किया। विद्याधर राजा गीछे लगा। दोनों में परस्पर अत्यन्त असह्य युद्ध हुआ । जंबुरुह ने सेना को परास्त कर दिया। बलराम ने जम्बुमाली को जीत लिया ॥ युद्ध में सक्षत दुर्जेय गोविन्द ने गदा से महाप्रचंड जम्ब को जीत लिया और विद्याधरी जम्बुचती का पाणिग्रहण कर लिया तथा उसको द्वारावती में प्रवेश कराया। दूसरे दिन नयनानन्द, अत्यन्त सुन्दर वीतशोक नगर में राजा चन्द्रमेरु और उसकी पत्नी चन्द्रमती ने अपनी कन्या को ब्याह दिया और गौरी लाकर श्रीकृष्ण को दे दी। द्वारावती में वे सुख से रहने लगते हैं। चला - लक्ष्मणा, सुसीमा और गन्धारी तथा रेवती की छोटी बहन पद्मावती से श्रीकृष्ण से विवाह किया। देवकी का मनोरथ पूरा हो गया ॥ ३॥ इस प्रकार आठ महादेवियों सहित तथा लक्ष्मीदेवी के साथ मधुसूदन राज्य का भोग करते हुए रहने लगते हैं। लोग धनधान्य और सुवर्ण से समृद्ध हैं। घर-घर में मानो कामधेनु दुही जाती है। घर-घर में धनद्रव्य बहता है। घर-घर में जैसे रत्नों की वर्षा होती है। घर-घर में मन १. वसु थियई दारावर पुरिहें ।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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