SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [सयंभूएबकए रिटुणेमिचरिए तुम्हई विण्णिवि, अणंतउ परमलु। किं घुदृहि गिट्ठा सायरजनु । भीयभीसमभीसिब कहें। छिविय ससताल-जसतम्हें १२ मुग्वज्नसयल संचूरिय। सीमंतिगिहे मणोरह पूरिय । जाणिनि अतुलपयाज अणतहो। पाएहि पडिथ णिया-कति हो । जइवि बुद्धरु खलु अविणयगारउ । रणे रक्षिा भाइ महारउ। एसा --तो वासएज-अलाएहि अभउ विष्ण भसाहिणिारे । तहि अवसरि पुग्णपहावें पत्ता विपिण बाहिगिहे ॥६॥ जायरसेण्णु मसेस पराइट। सरहसु विष्णु परोप्पर साइन । लइयई पहरणई रह वाहिय । महर्षिय तुरंग गइंव पसाहित ॥ विणाई तुरई कलपलु घोसिउ । णारज सह सुरेण परिओसिउ ।। ताव बमिय-दुद्दम-अणुवि।। पूरिउ पंचजणु गोचि ॥ णियजलया सुधोसिउ बलहवें। बहिरिउ तिहुअणु साह मिष । इरिय मुझंग बसंघरिय हल्लिय । गिरि-संघाय जाय पाहिलय ॥ - .-.-. -. . घटों से समुद्र के जल को समाप्त किया जा सकता है ? तब भयभीत उसे कृष्ण ने अभय वचन दिया। मश की तृष्णा रखनेवाले उसने सात तालपत्रों को छेद दिया और होरे की सम्पूर्ण अंगूठी फो चूर-चूर कर दिया । सीमंतनी (रुक्मिणी) का मनोरथ पूरा हो गया। अनन्त (श्रीकृष्ण का अतुलिस प्रताप जानकर वह अपने पति के पैरों पर गिर पड़ी और बोली)-"यद्यपि मेरा भाई दुर्घर, दुष्ट और अविनय करनेवाला है, तब भी युद्ध में उसकी रक्षा की जाए।" पत्ता-तब असत पाने की इच्छा रखनेवाली उसे वासुदेव और बलराम ने अभय वचन दिया । उसी समय पुण्य के प्रभाव से उन दोनों ने सेना प्राप्त की ।।६। समस्त यादवसेना पहुंच गयी। उसने हर्षपूर्वक एक-दूसरे का आलिंगन किया। अस्त्र ले लिपे गये और रथ हाँक दिए गये। घोड़ों को कवच पहना दिए गये; हाथियों को सज्जित कर दिया गया, नगाड़े बजा दिए गये, कलकल घोषित कर दिया गया, देवों के साथ नारद संतुष्ट हुए। तब दुर्दम दानवों के समूह का दमन करनेवाले गोविन्द ने शंख बजाया। बलभद्र ने भी अपना शंख अजाया। उनके निनाद से त्रिभुवन बहरा हो गया। नागराज भयभीत हो उठे, परती. कांप गयी।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy