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________________ [सयमूएवकए रितुणेमिचरिए दिवसमुहे बसायहसामिसासु ॥ बोस्लाविउ सविणउ कहिउ तासु । पाडिक सयल-मंगल णिवासु ॥ सुणु पाह णिहालिज पठमु हत्यि। परिबिज जासु जगे कोवि गरिथ ॥ सुहलक्षण भद्ध चविताए । भयसिसगत जुत्तपमाणु॥ पुणु रिसरंखोलिर-पुच्छ संदु। पुण बोलणहर-गंगुल सोह। तरुपल्लव-लोल-ललंतजीह ।। पत्ता-कमलालय कमलमालणयणी कमलचलगु कमसुजलवयणी। कमलपाणि-सुरकरि-हिसारी विट्ठलगिक जगमंगलकारी ॥४॥ पुणु गुरुगंधुवर दाभजुयलु। परिमल-परिमिलिय-चलालि मुहलु ॥ पुणु छण-ससितंछण रहिउ काउ। ताहिज भाभूसिउ-भुवणभाउ । पुणु दससफिरण-करालियंगु । तमतिमिरणियर-वारणपयंगु॥ पुणु मीणगुपलु फलसहयाई। गं सोक्खणिहाण-'महरियाई॥ पुण सरवर कमलाफमसरम्म् । पुणु जलणिहि जलयरमीवजन्म । सवेरा होने पर उसने विनयपूर्वक, दशाहों के स्वामीश्रेष्ठ (समुद्रविजय) से कहा-"प्रत्येक (अथवा प्रत्यक्ष) समस्त मंगल के निवास है नाथ, सुनिये । पहले मैंने हार्थी देखा जिसके समान दुसरा हामी जग में नहीं है, शुभ नक्षणों वाला भद्रहस्ति, जिसका शरीर मद से सिक्त है और जो उचित प्रमाण वाला है। फिर, ईपर्या से अपनी पूंछ हिलाता हुआ बैल, लम्बे नखों और पूंछवाला सिंह जिसकी चंचल जीभ वृक्ष के पत्तों की तरह लपलपा रही है। पत्ता--फिर, मैंने लक्ष्मी को देखा, सरोवर जिसका घर है, जिसके नेत्र कमलमाला के समान हैं, जो कमल के समान उज्ज्वल मुखवाली है, जिसके कमल के समान हाथ हैं, जो ऐरावत हाथी पर विहार करती है और जो विश्व का कल्याण करनेवाली है ।॥४॥ फिर प्रचुरगंध से उत्कट मालायुगल जो सौरभ से गिले हुए चंचल भ्रमरों से मुखर है । फिर लांछन से रहित शरीरघाला चन्द्रमा जिसकी प्रभा से भुवन प्रभासित है । फिर, हजारों किरणों से आलिगित शरीर और तम-तिमिर के समूह को नष्ट करनेवाला सूर्य । फिर मीनयुगल, फिर कमलों से आच्छादित सुस्त्र के घर दो बलश, फिर लक्ष्मी और कमलों से रमणीय सरोवर, फिर अलचर जीवों से सुन्दर समुद्र, फिर सिंहासन, फिर विमान, फिर प्रचुर भवनोंवाला नागलोक, . m......... --parames---.. - -- १., ब--कमल सद्दयाई । २. अ, ब-महट्टयाई।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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