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________________ [सयंभूएवकए रिद्वणेमिचरिए घत्ता-शाहि कुजेर कार हि मह पेसण फेडइ हरि-हतहर-वरभासणु। करि पुष्ठ गरह मोमबाई माया ॥१॥ वित्यारे गवनोयणाई। करि एषकहिं पंच वि पट्टणाई ।। यासविहिं कउ संविवसेणु। वाहिणयहि महुरहि नगसेणु॥ पच्छिमियहि सजरिवसारजे? । उत्तरेणावासज गंजगोटु ।। बारवइ-मसि ताहि पउमणाहु । अच्छउ सबंधु परिपगसणाहु॥ हरिभवणु करिग्महि भुषणसार । अचछारह भूमि-'सहासवार ।। आहष्ट-दिवस पुर परिय ताम। धण-घण्ण-सुवष्ण-बढ़त जाम ।। रह वेज्जहि पहरण-भरियगत्तु। गारुडघउ-चामर सेय छत्तु ।। सिविखाउ सरिदेण जाई जेम । अपराई मि ताई कियई तेम ॥ घत्ता-सागह पासिउ सक्काएसें, सउरी-पुरवर रइउ विसेसे। महिं तइलोय-मंगलगारउ, उप्पज्जेसइ-मिभडारउ ॥२॥ पइसारिउ पुरे केसब-सुबंधु । पता- "हे कुबेर ! तुम जाओ, मेरे आदेश का पालन करो और हरि और बलभद्र का दर्भासन तुड़वाओ, द्वारावती नाम का नगर बनाओ जो लम्बाई में बारह योजन का हो ॥१॥ __जो विस्तार में नो योजन हों ऐसे एक जगह पांच नगर बनाओ। पूर्व दिशा में संविवसेन का निवास बनाओ, दक्षिण दिशा में मथुरा के उग्रसेन का, पश्चिम दिशा में शौर्यपुर के दशाहों में सबसे जेठे समुद्र विजय का और उत्तर दिशा में नंदगोठ का निवास बनाओ । यहाँ द्वारावती के बीच में पपनाथ (श्रीकृष्ण) के लिए हरिभवन बनाओ जो भुबन में श्रेष्ठ हो, जिसमें अठारह भूमियां और एक हजार द्वार हों। साढ़े तीन दिन तक तब तक नगर की रचना करो अब तक वह धनधान्य और स्वर्ण से परिपूर्ण न हो जाए। हथियारों से भरा हआ रथदें।"कोर ने गरुडध्वज, चामर और श्वेत छत्र उसी प्रकार दिये, जिस प्रकार देवेन्द्र ने उसे सिखाया था। दूसरी चीजें भी उसने उसी प्रकार बनायीं। प्रता-देवेन्द्र के आदेश से स्वर्ग को स्पर्श करनेवाला शौर्यपुर विशेष रूप से बनाया गया जहाँ त्रिलोक का कल्याण करनेवाले आदरणीय नेमिनाथ उत्पन्न होंगे ॥२॥ नारायण और सुबंध को नगर में प्रवेश कराया गया। अभिषेक किया गया और पट्ट बांधा १. स–स वारंवार।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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