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________________ भूमिका महाकवि स्वयंभू और उनका समय "महाकवि स्वयंभू अपभ्रंश-साहित्य के ऐसे कवि हैं जिन्होंने लोकरुचि का सर्वाधिक ध्यान रखा है। स्वयंभू की रचनाएँ अपभ्रंश की आख्यानात्मक रचनाएं हैं, जिनका प्रभाव उत्तरवर्ती समस्त कवियों पर पड़ा है । काव्य-रचयिता के साथ स्वयंभू छन्दशास्त्र और व्याकरण के भी प्रकाण्ड पण्डित थे। ___ कवि स्वयंभू के पिता का नाम मारुतदेव और माता का नाम पपिनी था। मारुतदेव भी भी कवि थे। स्त्र द में तह र भाउमेरा' कालर ना निलिखित दोहा उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत किया है मद्धउ मित्त भमतेण रअणा अरचदेण । सो सिज्जते सिज्जह वि तह भरइ भरण' ।। स्वयंभूदेव गृहस्थ थे, गुनि नहीं ! 'पउमपरिउ' से अवगत होता है कि इनकी कई पलियां थीं, जिनमें से दो के नाम प्रसिद्ध हैं—एक अइन्धबा (आदित्यम्बा) और दूसरी सामिअंबा। ये दोनों ही पस्नियाँ सुशिक्षिता थीं। प्रथम पत्नी ने अयोध्याकाण्ड और दूसरी ने विद्याधरकाण्ड की प्रतिलिपि की थी। कवि ने उक्त दोनों काण्ड अपनी पत्नियों से लिखवाये थे। __ स्वयंमदेव के अनेक पुत्र थे, जिनमें सबसे छोटे पुत्र त्रिभुवनस्वयंभू थे। श्री प्रेमीजी का अनुमान है कि त्रिभुवनस्वयंभू की माला का नाम सुअब्बा था, जो स्वयंमूदेव की तृतीय पस्नी थी। श्री प्रेमीजी ने अपने कथन की पुष्टि के लिए निम्नलिखित पद्य उद्धृत किया है सम्वे वि सुझा पंजरसुअख्न पनि अक्खि राई सिक्सति । कइरामस्स सुओ सुअन्व-सुइ-गन्भ संमूओ ॥ अपभ्रंश में 'सुअ' दाब्द से सुत और शुक दोनों का बोध होता है। इस पद्य में कहा है कि सारे ही सुत पिंजरे के सुओं के समान पड़े हुए ही अक्षर सीखते हैं, पर कविराजसुत त्रिभुवन 'श्रुत इव श्रुतिगर्मसम्भूत' हैं । यहाँ श्लेष द्वारा सुअच्चा के शुचि गर्म से उत्पन्न त्रिभुवन अर्थ भी प्रकट होता है । अतएव यह अनुमान सहज में ही किया जा सकता है कि त्रिभुवनस्वयंभू की माता का नाम सुअब्बा था। स्वयंभू शरीर से बहुत दुबले-पतले और ऊंचे कद के थे। उनकी नाक चपटी और दांत विरल थे। स्वयंभू का ब्यक्तित्व प्रभावक था। वे शरीर से क्षीण काम होने पर भी ज्ञान से पुष्टकाय थे । स्वयंमू ने अपने वंश, गोत्र आदि का निर्देश नहीं किया, पर पुष्पदन्त ने अपने - डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य की कृति 'तीर्थकर महावीर और उनकी आनायं-परम्परा' भाग ३ से जीवन-परिचय, प्रकानया द्वारा साभार । १. अनेकान्त, वर्ष ५, किरण ५-६, पृ. २६६ २. जैन साहित्य और इतिहास, प्रथम संस्करण, पृ० ३७४
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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