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________________ ६] [सयंमूएक्कए रिट्ठणेभिचरिए कसणायस-बालप-मिमनरंतु । घिर मग णिमेषि जिम कायंदु ।। द्रवमुहिए हर पारायणेण। कालिमा काम पवारमेण ॥ परिममिड चउदिसु पीयबास । पं विज्जयुज णवजलहरासु ॥ खेल्लावि जिणिप्फबु हरिथ । गएमा माहीविउ अस्थि णस्थि ।। कर तोखिउ मोहिउ एक्कु दंतु । गउ बप्प-पणासिउ लघुलतु ॥ पत्ता-तं मापस वलय-णिवव्यु करि-विसाणु हरिणा करि किन । सिसु-कसण-भुवंगम रुक्षु केयइ-कुसुमे गाई थिउ ।।।। हरि-हलहर सडं गोहिं पाट । परिमल्लेहिं णं जमजोह दिट्ठ॥ सयल विभड-उम्मड-भिडि-भीस । सयल वि वडमाला-बबसोस ।। सयल विप्राबीलिय बद्धकच्छ । सयल वि कोवारुण-दारुणमछ। सयल वि विसहर-विसमसील । सयल वि कलिकाल कयंत लील । सयल वि पारायण-सम सरीर। सयल नि सुरगिरिवर-गयधीर ।। सयल वि हरिविक्कम-सारभृय । बलय से बँधे हुए थे और यम की भांति रास्ता रोककर स्थित था। श्रीकृष्ण ने मजबूत मुष्टि से उसे आहत कर दिया। और जबतक गज द्वारा प्रगित होते, कि उमसे पहले ही पीतवस्त्रधारी श्रीकृष्ण उसके चारों ओर घूम मये, मानो नए मेघसमूह के चारों ओर विद्युत्समूह हो । श्रीकृष्ण ने खेल खिलाकर हाथी को जड़ कर दिया, यह नहीं ज्ञात हुआ कि उसमें जीव है या नहीं। उसकी संह तोड़ दी और एक दांत तोड़ दिया। जिसका दर्प नष्ट हो गया, ऐसा हायी दम तोड़ता हुआ भाग गया। पता-लोह-वलय (जंजीर) से बंधे हुए उस हाथी के दांत को श्रीकृष्ण ने हाथ में ले लिया। उनके हाथ में वह ऐसा लगता था जैसे केतकी के कुसुम में अवरुद्ध शिशुनाग हो ।।६।। . ___बालों के साथ हरि और बलराम प्रविष्ट हुए। शत्रुमल्लों ने उन्हें यमयोद्धाओं की तरह देखा। सभी योद्धा उभट और भौंहों से भयंकर थे । सभी ने अपने सिरों पर बटमालाएँ (मुरेठा, पगडी? बाँध रखी थी। सभी ने कसकर कच्छे बांध रखे थे। सभी कोच से लाल और भयंकर आँखोवाले थे। सभी विषधरों के समान विषम स्वभाववाले थे। सभी कलि-काल और यम की तरह आचरण करनेवाले थे। सभी नारायण के ममान शरीरवाले थे। सभी सुमेरु पर्वत की तरह भारी और धवाले थे। सभी सिंह के पराक्रम के समान श्रेष्ठ थे। सभी शत्रु-बलसमूह के
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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