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[सयंभूएवकए रिट्टणेमिचरिए पत्ता-सर कालिउकालिविजन तिम्णिवि मिलियई कालाई अंधारी एयउ सम्खु काई णियंतु णिहालाई ॥१॥
उवाइज विसहरु विसमलील । कलिकाल कर्यत-रउद्दसोलु ।। कालिन्वीपमाण-पसारिपंग । 'विवरीयत्रालिय-जल-चल-तरंगु॥ विष्फुरिय फणामणि किरणजाल। फुरकार-भरिय-भवणंतराल ॥ गुहागर मलकीहरिए। गयणग्गि-सुलुक्किय-अमरविदुः ॥ विससिय-जउण-जल-पवाहु। अवाणिय-पंकयणाह-जाह॥ बप्पखर चव-फणालि-बड़। गं सरिय पसारित बाहदंड ।। उम्पण्णव पण्पद अग्ज कोधि । पहरिजहि णाह णिसंक होति। तो विसम विसग्गारुग्गमेण ।
हरि वेदित उरि उरषंगमेण ॥ पत्ता-जउणावहे एक महत्त केसव सलिल कोल करछ । रयणायरे मंदर गाइ 'विसहर-वेढिन संचरह ॥२॥
गियरूतिए असुर-परायण। पत्ता-केशय, कालियानाग और कालिंदीजल तीनों काले मिल गए, सब कुछ अंधकारमय हो गया। देखे हुओं को देखने से क्या ? ॥१॥
विषम स्वभाव वाला वह विषधर दौड़ पड़ा । वह कलिकाल और कुदंत के समान रुद स्वभाव का था, प्रसरित अंगों वाला यह यमुना का प्रमाण-स्वरूप था। जिससे जल की पंचत्त तरंगें विपरीत दिशा में बह रही हैं, जिसके फणामणि पर किरण समूह चमक रहा है, जिसके फत्कार से भवन का अंतराल भर जाता है, जिसके मुखरूपी कुहर को हषा से पर्वतगज उड़ जाता है, जिसके नेत्रों की आप में अमर समूह ध्वस्त हो जाता है, जिसके विष से यमुना का जल-प्रवाह दूषित है, जिसने कमलनाथ स्वामी की उपेक्षा की है, जो दपं से उद्धत है, जिसने प्रचंड फनों की आपली उठा रखी है जो ऐसी मालूम होती है कि मानो सरिता ने अपना नाहुदंड फैला लिया है, ऐसा कोई सर्प आज उत्पन्न हुआ है। हे स्वामी, आप निश्चित होकर उस पर प्रहार कीजिए। तब जिससे विष का उद्गार उत्पन्न हो रहा है, ऐसे नागराज ने हरि को घेर लिया।
घत्ता-यमुना के महासरोवर में केशव एक पल के लिए क्रीड़ा करते हैं, मानो समुद्र में विषपरों से घिरा हुआ मंदराचल चल रहा है ॥२॥ ___अपने तेज से असुरों को पराजित करने वाले नारायण को कालिय नाग दिखाई नहीं दिया। १. अ-विधीयचलिय जलचर तरंगु । 2. अ—अजु । ३. --विसहतेहिउ संचरह।