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गफमार
विषय
गाथा
१५१
रत्नत्रय से मुक्ति
१०८ १४३ जिनलिंग मुक्ति का हेतु
१०९ १४४ शुद्धोपयोग से मुक्ति
१४५ सम्यक्-दर्शन की साधना
१४६ लोकपूज्य सम्यग्दर्शन
१४७ काल-दोष
१४८ श्रावक की वेपन क्रिया
१४९ ज्ञानाभ्यास से मुक्ति
११४ १५० श्रुत की भावना से उपलब्धि मिथ्यात्व से अनन्तकाल भ्रमण
१५२ सम्यग्दर्शन के सद्भाव अभाव का फल ११७ १५३ उभय दृष्टि परिणाम
१५४ रात्रिभोजन में कुशीलता है
११९ १५४
(ब. प्रति से) सम्यक्त्व रहित ज्ञानाभ्यास व अनुष्ठान संसार के हेतु ११९ १५५ ममकार के त्याग बिना मुक्ति नहीं
१२१ १५६-१५७ रत्नत्रय युक्त निर्मल आत्मा समय है
१५८ कर्मक्षय का हेतु सम्यक्त्व
१५९ सम्यग्दर्शन रूपी रत्न दीपक
१२४ १६० जिनेन्द्र वचनों का अभ्यास मोक्ष का हेतु १२४ १६१ धर्म्यध्यान मुक्ति का बीज
१२५ १६२ काल आदि लब्धि से आत्मा परमात्मा
१२६१६३ भक्ति मुक्ति का सुख
१२७ १६४ ग्रन्थ का प्रयोजन
१२८ १६५ ग्रन्थ की अवमानना से अलाभ
१२८ १६६ ग्रन्थ के सम्मान से लाभ
१२९ १६५ । गाथानुक्रमणिका
१३०.१३३
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