________________
रयणसार
सौभाग्य से बहुत सी सम्पत्ति मिल जावे तो उससे पराये लोग ही चैन से उड़ाते हैं; किन्तु उसके बन्धु-बान्धव और वह तो भूखों ही मरते रहते हैं । स्वयं सुख नहीं भोग पाता
"सकल पदारथ हैं घर माँहि ।
लोभी नर वह भोगत नाहिं" || वैसे ही विषयासक्त अज्ञानी भी जीवन में कभी सुख भोग नहीं पाता | क्योंकि विषयासक्त हो चार बातों से कभी छुटकारा नहीं मिला--१. घृणा, २. पाप, ३. भ्रम और ४. कलंक । विषयासक्त अज्ञानी सम्मानित परिवार को नष्ट करता है और कलंकित लोगों की श्रेणी में जा बैठता है। सुखसमृद्धि, ईर्ष्या लरने वालों के नहीं है, ठीक इसी तरह गौरव में विषयासक्त अज्ञानी के लिए नहीं है । मात्र अपकीर्ति और अपमान ही उसके भाग्य में रह जाते हैं।
फल को कौन प्राप्त करता है ? वत्थु समग्गो णाणी, सुपात्त-दाणी जहा फल लहइ । णाण-समग्गो विसय-परिचत्तो लहइ तहा चेव ।।७४।।
अन्वयार्थ ( जहा ) जैसे ( वत्थु-समग्गो ) समस्त पदार्थों की समग्रता/युक्तता सहित ( सुपात्त-दाणी ) सुपात्रों को दान देने वाला ( णाणी ) ज्ञानी ( फलं ) फल को ( लहइ ) पाता है ( तहा चेव ) वैसे ही ( विसय-परिचत्तो) विषयों का त्यागी ( णाण-समग्गो) ज्ञान से युक्त ज्ञानी ( लहइ ) फल को पाता है। ___अर्थ-जिस प्रकार सभी प्रकार पदार्थों की युक्तता सहित सुपात्र को दान देने वाला शानी फल को प्राप्त करता है, उसी प्रकार विषयों का त्यागी ज्ञान से युक्त ज्ञानी फल को पाता है। __पूर्व पुण्योदय से संसार में समस्त साधन उपलब्ध होने पर सुपात्रो में दान देने वाला ज्ञानी हो दान के फल को पा लेता है । तिरुक्कुरल ग्रंथ में आचार्य देव लिखते हैं-दान लेना बुरा है, चाहे उससे स्वर्ग ही क्यों न