________________
२५
अन्वयार्थ - []( लोण संवाद ) लौकिक जनों की संगति से ( महा - मुहर - कुडिल दुब्भावो ) महा - वाचाल, कुटिल, दुर्भाव युक्त ( होइ ) हो जाता है ( तह्या ) इसलिये ( जोइवि ) अच्छी तरह देखभाल कर ( लोइय-संग) लौकिक जनों की संगति को ( तिविहेण ) तीनों प्रकार मन-वचन-काय से ( मुच्चाहो ) छोड़ देना चाहिये ।
रयणसार
अर्थ - मनुष्य लौकिक जनों की संगति से महा - वाचाल / अत्यधिक बोलने वाला, कुटिल, दुर्भावना युक्त हो जाता है, इसलिये अच्छी तरह से देखभाल कर लौकिक जनों की संगति का मन-वचन काय से त्याग कर देना चाहिये । अर्थात् संगति विचारपूर्वक ही करना चाहिये क्योंकि
-
संगत ही गुण उपजै, संगत ही गुण जाय । बाँस, फाँस अरु मीसरी, एक ही भाव बिकाय ॥ सम्यक्त्वरहित जीव कौन ?
उग्गो तिब्वो दुट्टो, दुब्भावो दुस्सुदो दुरालावो । दुम्मद रदो विरुद्धो, सो जीवो सम्म उम्मुक्को ।। ४३ ।।
अन्वयार्थ - जो जीव ( उग्गो ) उग्र (तिब्बो ) तीव्र ( दुट्ठो ) दुष्ट ( दुब्भावो ) दुर्भावना युक्त ( दुस्सुदो ) मिथ्या - शास्त्रों को सुनने वाला (दुरालावो ) दुष्ट वचनालाप करने वाला / दुष्टभासी ( दुम्मरदो) मिथ्या अभिमान / अहंकार में रत और ( विरुद्धो ) आत्मधर्म के विरुद्ध/देव-शास्त्र-गुरु की आज्ञा के विरुद्ध है ( सो जीवो ) वह जीव ( सम्प-उम्मुक्को ) सम्यक्दर्शन से रहित हैं ।
अर्थ - जो जीव उग्र प्रचंड, क्रोध प्रकृति वाला है, तीन स्वभाव वाला है दुष्ट, दयाहीन परिणाम / क्रूर प्रकृति वाला है दुर्भाव, दुःशील युक्त हैं मिथ्याशास्त्रों को सुनने वाला है, दुष्टभाषी / मिथ्या प्रलाप / भंड वचनो को बोलने वाला है, मिथ्या अहंकार में अनुरक्त हैं तथा आत्मधर्म व देवब- गुरु की आज्ञा के विरुद्ध आचरण करने वाला है; वह जीव सम्यक्त्व रहित है।
शास्त्र -
י