________________
रयणसार
सम्यग्दृष्टि कैसा होता है ? भय-वसण-मल-विवज्जिय, संसार/सरीर-भोग-णिविण्णो । अट्ठगुणंग-समग्गो, सणसुद्धो हु पंचगुरुभत्तो ।।५।।
अन्धयार्थ— ( दसणसुद्धो ) निर्दोष सम्यग्दर्शन का धारक सम्यग्दृष्टि ( हु । वस्तुतः ( भय-वसण-मल-विवज्जिय ) भय-व्यसन
और मलों से रहित होता है ( संसार-सरीर-भोग-णिविण्णो ) संसार, शरीर और भोगों से विरक्त होता ( अट्ठगुणंग-समग्गो ) अष्टांग गुणों से युक्त/पूर्ण ( पंचगुरुभत्तो ) पंचगुरु/पंच परमेष्ठी का भक्त होता है।
अर्थ—निदोष सम्वन्दशन का धारक सम्यग्दृष्टि जीव निश्चय ही [सात ] भय, [ सात ] व्यसन और [ पच्चीस ] मल दोषों से रहित, संसार, शरीर व भोगों से विरक्त [तथा ] निःशंकितादि अष्टांग सम्यक्त्व के गुणों से युक्त और पंचपरमेष्ठी का भक्त होता है । ___ सात भय– १. इहलोक भय, २. परलोक भय, ३. वेदना भय. ४. मरण भय, ५. आकस्मिक भय ६. अरक्षा, ७. अगुप्ति भय ।
सात व्यसन- १. जुआ खेलना, २. माँस खाना, ३. सुरापान, ४. शिकार करना, ५. वेश्यागमन ६. चोरी करना और ७. परस्त्री सेवन ।
२५ मल दोष–८ शंकादि दोष, ८ मद, ६ अनायतन और ३ मूढ़ता। ८ शंकादि दोष- १. शंका, २. कांक्षा, ३. विचिकित्सा, ४. मूढदृष्टि,
५. अनुपमूहन, ६. अस्थितिकरण ७. अवात्सल्य ८: अप्रभावना 1 ८ मद---१. ज्ञान मद, २. पूजा/आज्ञा प्रतिष्ठा मद, ३. कुल मद, ४.
जातिमद, ५. बल/शक्ति मद, ६. ऋद्धि/विभूति/संयम/ऐश्वर्य
मद, ७. तप मद, ८. शरीर/रूप मद । ६ अनायतन–कुगुरु, कुदेव, कुधर्म और तीनों के सेवक । ३ मूढ़ता- १. देवमूढ़ता, २. गुरुमूढ़ता और ३. लोकमूढ़ता । आठ गुण- १. नि:शंकित, २ नि:कांक्षित, ३. निर्विचिकित्सा, ४.