SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रा .. - २० - रत्नमाला पुन .. 48 अर्थ : चमड़े के बर्तन में रखे हए तेल-घी-जल आदि का त्याग कर देना चाहिये। क्योंकि उस में रखे पदार्थों में त्रस जीवों के शरीर के मांसाश्रित रहनेवाले जीव अवश्य रहते हैं। और भी विशेष वर्णन के लिए देवसेन विरचित सावयधम्म दोहा - (३२) विलोकनीय दही बिलौने पर जो लौनी निकलती है, उसी का नाम मक्खन हैं। सद्गृहस्थ को नवनीत का त्याग कर देना चाहिए। आ. अमृतचन्द्र लिखते हैं कि - नवनीतं च त्याज्यं योनिस्थान प्रभूत जीवानाम् । (पुरुषार्थ सिध्दयुपाय - १६३) अर्थ : अनेक जीवों के उत्पन्न होने का योनिस्थान होने से नवनीत त्याज्य है। आ. देवसेन ने नवनीत खानेवाले को अन्धा कहा है। देखो - (सावयधम्मदोहा -२८) पं आशाधर जी ने लिखा है कि - मधुवनवनीतं च मुञ्चेत्तत्रापि भूरिशः। द्वि-मुहूर्तात्परं शश्वत्संसजन्त्यंगिराशयः।। (सागर धर्मामृत २/१२) अर्थ : धार्मिक पुरुषों को मधु के समान मक्खन को भी छोड़ देना चाहिये, क्योंकि उस में दो मुहर्त के बाद निरंतर बहुत जीवों का समूह उत्पन्न होता है। । शंका : दो मुहूर्त पर्यन्त नवनीत शुद्ध है - ऐसा उपरि श्लोक से सिध्द होता है। फिर दो मुहूर्त पर्यन्त नवनीत खाने में क्या दोष है? | समाधान : नवनीत गरिष्ठ होने से कामोत्तेजक है। कामोत्तेजना बढ़ानेवाले पदार्थों का | भक्षण करने से व्रत निरतिचार नहीं पल सकते, अतः नवनीत का पूर्णतया त्याग कर देना ही उचित है। आ. समन्तभद्र कहते हैं कि अल्पफल बहुविधातान्मूलकमाणि शृंगवेराणि नवनीत निम्बकुसुमं कैतकमित्येवमवहेयम् ।। (रत्नकरण्ड श्रावकाचार ८५) अर्थ : जिस में लाभ थोड़ा और बहुत प्राणियों का घात होवे-ऐसे मूली-गीली अदरक, मक्खन, नीम के फूल, केवड़ा आदि के फूल न खावें।। बहुजीवघात के भय से गृहस्थ पुष्पादि शाक नहीं खावें। सुविधि शाम पत्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy