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________________ गुजरा .. -३० रत्नमाला पठ .. 42 qs7. - 421 अन्य प्रकार से प्रासुक जल पाषाण स्फोटितं तोयं घटी-यन्त्रेण ताड़ितम् | सधः संतप्त-बापीनां प्रासुकं अलमुध्यते।। २३ देवार्षीणां प्रशौचाय स्नानाय च गृहार्थिनाम् । अप्रासुकं परं वारि महातीर्थजमप्यदः || २४ अन्वयार्थ : पाषाण स्फोटितम् घटीयन्त्रण ताडितम् वापीनाम् संतप्त ज्ञातव्य है कि | श्रावकाचार संग्रह में पाषाण स्फोटितं की जगह पाषाणोत्स्फुटितं | छपा हुआ है। तथा देवार्षीणां की जगह देवीणां छपा हुआ है। पाषाण से टकराया हुआ घटी यन्त्र से ताडित किये हुए वापिकाओं का गरम ताजा जल साधुओं के शौच के लिए और श्रावकों के स्नानार्थ तोयम् देवार्षीणाम् प्रशौचाय गृहार्थिनाम् स्नानाय जलम् जल उच्यते कहा जाता है। परम् अन्य कार्यार्थ (ऐसा) वारि जल अप्रासुकम् अप्रासुक हैं। महातीर्थजम् महातीर्थों से उत्पन्न हुआ अदः जल अपि अप्रासुकम् अशुद्ध है। अर्थ : पाषाण स्फोटित, घटीयन्त्र ताड़ित, वापिकाओं का गरम एवं ताजा जल साधुओं के शौच के लिए तथा गृहस्थों के स्नान के लिए शुद्ध है। अन्य कार्यों के लिए नहीं, भले ही वह तीर्थों का जल ही क्यों न हो। भावार्थ : पत्थरों से टकराता हुआ पानी अर्थात् धबधबे का जल. घटि यन्त्र से ताड़ित किया हुआ जल और सूर्य किरणों से स्वयं तपा हुआ जल प्रासुक माना गया है। अतः साधुगण इसे शौच-शुध्यादि कार्यों के लिए तथा गृहस्थ उसे स्नान के लिए प्रयोग में ले सकता है। अन्य कार्यों में वह शुद्ध नहीं है। शंका : वैदिक मतानुयायी तीर्थ क्षेत्र से लाये हुए जल को तथा गंगा आदि से लाये हुए जल को शुद्ध मानते हैं। क्या यह उचित है? समाधान : नहीं, ऐसा नहीं मानना चाहिये। जल चाहे गंगादि नदियों का हो अथवा तीर्थ क्षेत्रों का हो अथवा सामान्य स्थलों का हो, सम्मूर्धन जीव सभी में उत्पन्न होते हैं। अतः विधिपूर्वक शुधन करके ही जल का प्रयोग करना चाहिये।__. म सुविधि शाम चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद,
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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