SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुप्त . . २० रत्नमाला न त . 37 __ आ. पूज्यपाद कहते हैं कि - मद्यमांसमथुत्यागैः सहोदुम्बर पञ्चकैः। गृहिणां प्राहुराचार्या अष्टौ मूलगुणानिति।। (पूज्यपाद श्रावकाचार १४) | अर्थ : तीन मकार त्याग तथा पंच उदम्बर फल त्याग ये आठ मूलगुण हैं। ग्रंथकार ने आर्भकषु (बालकों के लिए कहते सुनम: जोड दिया है। यथाः मद्य-मांस-मधुत्याग पञ्चोदुम्बरैः अष्टौ मूलगणाः पण्डित आशाधर का तृतीय पक्ष है। वे लिखते हैं कि - मद्यपलमधु निशाशन पञ्चफली-विरति पञ्चकाप्तनुती। जीवदया जलगालनमिति च क्वचिदष्टमूलगुणाः ।। (सागार धर्मामृत २/१८) अर्थ : मद्य, मांस, मधु का त्याग, रात्रिभोजन त्याग, पंचोदुम्बर फल त्याग, पंच | परमेष्ठी नमन, जीवदया पालन और जल गालन ये ८ मूलगुण हैं। इस श्लोक में दो तरह के अष्ट मूलगुणों का वर्णन किया गया है। स्वयं ग्रंथकार "आर्भकेषु" शब्द का प्रयोग करते हुए प्राथमिक शिष्य के लिए मूलगुणों का कथन करते | हैं - ३मकार त्याग व ५ उदम्बर फल्न त्याग। ___ मकार से मद्य-मांस-मधु का ग्रहण करना चाहिये। उदम्बर फल पाँच है पीपल, उमर, पाकर, बड़, अंजीर। वृक्ष के काठ को फोड़कर उस के दूध से उत्पन्न होने वाले फलों को क्षीरीफल अथवा उदम्बर फल कहते हैं। उन फलों को विदारने पर प्रत्यक्ष में दृष्टिगत होनेवाले जीवों की अपेक्षा असंख्यात गुणित सूक्ष्म जीव | उन में पाये जाते हैं। अतः जो उदम्बर फल खाता है, वह जीव दया का परिपालन नहीं कर सकता। इसके अलावा इन को खाने में तीन लोलुपता होने से, भावहिंसा भी प्रचुर मात्रा में होती हैं। अतः इन का त्याग करना चाहिये। शेष गुणों का कथन स्वयं आचार्यदेव करेंगे। - - - - - - - - - ONA सुविधि झाल चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद,
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy