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________________ तुला .. . २ रत्नमालागा .. 350 सच्छब्दः प्रशस्तवाची। लिखेय॑न्तस्य युचि प्रत्यये सति तनूकरणेऽर्थे लेखनेति सिध्यति। ततः कायस्य बाह्यस्याभ्यन्तराणां च कषायाणां तत्कारणहापनया क्रमेण सम्यग्लेखना सल्लेखनेति समासार्थः कथ्यते (तत्त्वार्थवृत्ति ७/२२) अर्थ : आयु, इन्द्रिय और बल का नाश हो जाना मरण है। इस भव का मरण होना मरणान्त है. मरणान्त है प्रयोजन जिसका अथवा मरणान्त में जो होवे, वह मरणान्तिकी कहलाती है। सत् शब्द प्रशंसावाची है, लिख धातु कृश करने अर्थ में है। उसके आगे चुरादिगण में युच प्रत्यय आनेपर लेखना शब्द बनता है। बाह्य में शरीर का और अभ्यन्तर में कषायों का और उनके कारणों का क्रम से कम करना, सम्यग्लेखना सल्लेखना कहलाती है। मरण काल में सल्लेखना ग्रहण करना सो मारणान्तिक सल्लेखना है। कई आचार्यों ने सल्लेखना को बारह व्रतों में नहीं लिया है। उन्होंने चार शिक्षाव्रतों में सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोग परिणाम व अतिथि संविभाग को ग्रहण किया है। __प.पू. सिध्दान्त चक्रवर्ती, आचार, श्री सन्नतिमार जी महाराज के अनुनाः । १३ प्रकार का चारित्र मुनि महाराज का होता है। ५ महाव्रत, ५ समिति और ३ गुप्ति। इसी प्रकार १३ व्रत गृहस्थ के भी होते हैं, कौनसे? ५ अणुतत, ३ गुणव्रत, ४ शिक्षा व्रत और सल्लेखना। वास्तव में श्रावक के १२ व्रत ही होते हैं, फिर १३ वा व्रत क्यों जोड़ दिया गया? इसीलिए जोड दिया गया है कि सल्लेखना जीवन का एक शिखर है। जैसे मंदिर बनाकर शिखर बनाते हैं, वैसे ही व्रतादिको ग्रहण कर के मरणकाल में सल्लेखना धारण की जाती है। अतएव १३ व्रत कहे। (सुविधि की ललकार - फरवरी १९९७ पृ. ६०) - - - - - - - -- - - - - - - - - - - - -FNG सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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