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________________ 73. - २० रत्नमाला | अथवा वागन्तोऽयं शब्दः समञ्यतीति सम्यवह। यथा अर्थोऽवस्थितस्तथैवावगच्छतीस्यर्थः। राजवार्तिक १/२/११ अर्थ : 'सम्यक यह प्रशंसार्थक शब् (निपात या क्षयन्त प्रत्ययान्त है। सम्यक शब्द को निपात, प्रशंसा अर्थ में जानना चाहिए क्योंकि यह प्रशंसा रूप, गति, जाति, आयु, विज्ञान आदि अभ्युदय और निःश्रेयस् का प्रधान कारण होता है। प्रशस्त दर्शन सम्यग्दर्शन है। शंका : "सम्यगिष्टार्थतत्त्वयोः" इस प्रमाण के अनुसार सम्यक शब्द का प्रयोग इष्टार्थ और तत्त्व अर्थ में होता है अतः इसका प्रशंसा अर्थ उचित नहीं है। समाधान : निपात शब्द अनेकार्थक हैं, इसलिए प्रशंसा अर्थ मानने में कोई विरोध नहीं है। अथवा सम्यक शब्द का अर्थ तत्त्व में निपात किया जाता है, जिसका अर्थ है तत्त्वदर्शन सम्यग्दर्शन। अविपरीत अर्थ को तत्त्व कहते हैं। अथवा सम्यक शब्द क्विप प्रत्ययान्त है। इसका अर्थ है, जो पदार्थ जैसा है उसको वैसा ही माननेवाला। देवशास्त्र और गुरु दरमा माया प्राध्यान तावदर्शन है। सम्यग्दर्शन के महत्त्व को बताते हुए आ. कुन्दकुन्द लिखते हैं कि - जह मूलाओ खंधो साहापरिवार अहगणो होड़। तह जिणदसण मूलो णिहीहो मोक्ख मग्गस्स।। (दर्शनपाड - ११) अर्थ : जिस प्रकार मूल से वृक्ष का स्कन्ध और शाखाओं का परिवार वृध्दि आदि अतिशय से युक्त होता है, उसी प्रकार जिन दर्शन-आर्हत् मत अथवा जिनेन्द्र देव का प्रगाढ़ श्रध्दान मोक्ष मार्ग का मूल कहा गया है। ग्रंथकार कहते हैं कि सम्यक्त्व ही परम तत्त्व है एवं सम्यक्त्व ही परम पद है। सुविधि शाम चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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