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________________ ANNI Ti. : २० रस्नमाला . गत , - 16 राज - 16 .. - .. . - सम्यग्दर्शन का लक्षण अमीषां पुण्यहेतूनां श्रध्दानं तमिगद्यते। तदेव परमं तत्त्वं तदेव परमं पदम् ||९. अन्वयार्थ : - अमीषाम् पुण्य हेतूनाम् श्रध्दानम् उन पर पुण्य के हेतुभूत प्रदान को वह (सम्यग्दर्शन) कहा जाता है तत् निगद्यते तत् एव परमम् तत्वम् परम तत्त्व है तत् ** पदम् ... A 2 motion.. एव परमम् परम पद है। अर्थः देव-शास्त्र-गुरु पर जो कि पुण्य के हेतु हैं - उन पर श्रदान करना, सम्यग्दर्शन है। वह सम्यग्दर्शन ही परम तत्त्व और परम पद है। भावार्थ : संस्कृत भाषा में "सम् " नामक एक उपसर्ग है, जिसका अर्थ है, अच्छी तरह से। "अञ्चगतिपूजनयोः" इस नियमानुसार अञ्च धातु का अर्थ गमन करना अथवा पूजन करना है। "समञ्चतीति सम्यक " इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो अच्छी तरह से। गमन कर रहा हो अथवा जो निजात्मा के गमन स्वभाव में परिणमन कर रहा हो, वह सम्यक् है, ऐसा अर्थ सम् - अञ्च में क्विप् प्रत्यय लगाने पर बनता है। यह नियम है कि जो धातु गमनार्थक होती हैं. वे ज्ञानार्थक भी होती हैं। जब अन्य धातु ज्ञानार्थक मानी जायेगी तब अर्थ होगा, सम्पूर्ण पदार्थों को सम्यक् प्रकार से जानना। आचार्य अकलंक देव ने लिखा है कि - "सम्यगिति प्रशंसाओं निपातः क्वयन्तो वा। सम्यगित्ययं निपातः प्रशंसार्थो वेदितव्यः सर्वेषांप्रशस्तरूपगतिजातिकुलायुर्विज्ञानादीनाम् आभ्युवयिकानां मोक्षस्य च प्रधान कारणत्वात। "प्रशस्तं दर्शनं सम्यग्दर्शनम"। मनु च"सम्यगिष्टार्थ तत्पयोः" इति वचनात् प्रशंसार्थाभाव इति, तम, अनेकार्थत्वाभिपातानाम् । अथवा सम्यगिति तत्वार्थो निपातः, तत्त्वं दर्शनं सम्यग्दर्शनम् ” अविपरीतार्थ विषयं तत्वमित्युच्यते. - - - - - - - - - - सुविधि शान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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