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________________ H JEE r w -..-- - - - -- पुष्टा काम. - २ रत्लागाला ला .. - 111 || धर्म, बुध्द और संघ ये उन के रत्नत्रय हैं। विज्ञान, वेदना, संज्ञा संस्कार और रूप ये || पाँच स्कंध उन्होंने माने हैं। इन पाँच स्कंधों से ही विश्वोत्पत्ति मानने के कारण, उस से |भिन्न वे आत्मा को स्वीकार नहीं करते हैं। ये संसार की समस्त वस्तुओं को क्षणिक मानते हैं। मरे हुए प्राणी का मांस खाने में ये लोग कोई दोष नहीं मानते हैं। | धर्मात्तर - अर्चट · धर्मकीर्ति - प्रज्ञाकर, दिग्नाग आदि बौद्ध दर्शन के मुख्य ग्रंथकार हैं,तो तर्कभाषा, हेतुबिन्दु, न्यायबिन्दु, प्रमाण वार्तिक और न्यायप्रवेश आदि प्रमुख ग्रंथ । हीनयान, महायान, योगाचार और माध्यमिक के भेद से वे चार प्रकार के हैं। २. चार्वाक : चारु और वाक दोनों शब्दों को मिलाने पर चार्वाक शब्द बनता है, उसका अर्थ है, सुन्दर बोलनेवाले। इनके गुरु बृहस्पति हैं। अतः इस मत को बार्हस्पत्य भी कहते हैं। चार्वाक साधु किसी भी वर्ण के होते हैं। कापालिकों की तरह वे भी खप्पर रखते हैं, शरीर में भस्म लगाते हैं। ये आत्मा, पुण्य - पाप आदि पदार्थों को स्वीकार नहीं करते हैं। इन के मत में मात्र प्रत्यक्ष को ही प्रमाण माना हैं। वाममार्गी लोगों के समान ये लोग भी मद्यपान, मांसभक्षण, अगम्यागमन आदि कार्य धर्मभक्ति से करते हैं। वे पुनर्भव को स्वीकार नहीं करते हैं। अतः उन का कथन है कि - यावज्जीवं सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् । भस्मीभुतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ।। अर्थ : जबतक जीओ सुखपूर्वक जीओ, ऋण लेकर भी घी पीओ। जब देह भस्म हो ||जायेगा, तब पुनरागमन कैसे होगा? इन का कोई प्रसिध्द ग्रंथ वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। ३. सांख्यादि । सांख्यादि शब्द से वैदिक षट् दर्शनों का ग्रहण किया गया है। अ) सारख्य: इस दर्शन के प्रणेता कपिल ऋषि हैं। प्रकृति और पुरुष इन दो तत्त्वों से |वे सृष्टि की संरचना को स्वीकार करते हैं। उस में से वे पुरुष को निर्गुण - निराकार - निर्लिप्त - अतिसूक्ष्म - निष्क्रिय तथा इन्द्रियातीत मानते हैं। प्रकृति जड़ है । वह व्यक्त और अव्यक्त रूप में दो प्रकार की है। भागवत में इस मत का बहुत वर्णन प्राप्त होता है। सांख्य मतानुयायी ईश्वर को स्वीकार नहीं करते तथा यज्ञादि क्रियाओं को भी स्वीकार नहीं करते। । सांख्य कारिका. सांख्य तत्त्व कौमुदी. युक्तिदीपिका, माठर वृत्ति, गौड़पाद भाष्य ये ] इन के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हैं। भार्गव, वाल्मिकि, हारीति, देवल, सनक, अंगिरा और सनत्कुमारादि इन के मुख्य प्रचारक हैं। | बा न्याय दर्शन : इस दर्शन के प्रणेता महर्षि गौतम हैं । इन्हें अक्षपाद भी कहते हैं। इतिहासकारों के अनुसार वे ई. पू. ५०० में हुए थे। कि सुविधि ज्ञान चत्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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