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________________ रत्नमाला गृछ-110 मिथ्यामत को पोषण करने का निषेध बौध्दचार्वाक - सांख्यादि- मिध्यानय कुवादिनाम् । पोषणं माननं वापि दातुः पुण्याय नो भवेत् ॥ ६१. shear str २० अन्वयार्थ : बौध्द चार्वाक सांख्यादि मिथ्यानय कुवादिनाम् पोषणम् वा माननम् अपि दातुः पुण्याय नो भवेत् बौध्द चार्वाक सांख्यादि मिथ्यानय के कु - वादियों का पोषण अथवा स्थापन भी दाता के लिए पुण्य का कारण म होता है। अर्थ : बौध्द, चार्वाक, सांख्यादि मिथ्यानय के प्रवाचक कु वादियों का पोषण अथव मानन दाता के लिए पुण्य का कारण नहीं होता है। भावार्थ: संसार में अनेक प्रकार के दर्शन हैं, जिनकी अटपटी मान्यतायें मोक्षार्थ। जीवों को संसार में भटकाने वाली है। मूलतः दर्शनों के दो भेद हैं, वैदिक दर्शन ए अवैदिक दर्शन । जो वेदों को प्रमाण मानते हैं, वे वैदिक दर्शन हैं। सांख्य, मीमांसक. वैशेषिक, नैयायिक, जैमिनीय और योग ये छह वैदिक दर्शन हैं। अवैदिक दर्शन के दो भेद हैं, आस्तिक और नास्तिक जैन और बौद्ध आस्तिक दर्शन हैं, तो चार्वाक नास्तिक दर्शन है। - इन सब का स्वरूप निम्नांकित है। १. बौध्द दर्शन : बौध्ददर्शन में बुध्द देवता है । बुध्द का द्वितीय नाम सुगत है अतः इसे सौगत दर्शन भी कहते हैं। बौध्ददर्शन में ४ आर्यसत्य माने गये हैं । दुःख, समुदय, निरोध और मार्ग | चमर धारण करना, मुण्डन करना, चर्म का आसन और कमण्डलु ये बौद्ध साधुओं के बाह्य लिंग है। धातु से रंगा हुआ घुटने तक का वस्त्र उन का वेष है। सुविधि बाम चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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