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________________ M चन्द्रिका टोका बचीसा श्लोक सथा ऐमा हुए विना मोक्षमार्ग प्रवृत्त नहीं हो सकता यह बात ऊपरकी कारिका में यद्यपि सूचित कर दी गई है फिरभी ग्रन्थकाने यह बात अभी तक स्पष्ट नहीं की है कि सम्यग्दर्शनकै हो जानेपर भी या रहते हुए भी यदि ज्ञान चारित्र सम्यक न हो या सम्यग्ज्ञान सम्यक चारित्र न रहे तो आपति क्या है ? बाधाओंका निर्देश करके यह नहीं बताया गया है कि ऐसी अवस्थामें ये बाथायें आती है अतएव इस बातका समाधान करने के लिये तथा इसके साथ ही इस प्रश्नके अन्तर्गन और भी जो जो प्रश्न उपस्थित होते हैं या हो सकते हैं उन सनों का भी समाधान करनेके लिये यह . कारिका अत्यन्त प्रयोजनवनी है जिसमें कि इस अध्यायके अन्त तक आगे कही जाने वाली सम्पूर्ण कारिकाओं के प्रयोजनका उल्लेख भी बीजरूपमें अन्तर्निहित है। क्योंकि विपक्षमें जिन भार विषयोंकी असिद्धि की बाधा यहां बनाई गई है, उन्हीं सम्भूति, स्थिति, वृद्धि और फलोदय का ही तो आगे चलकर कारिका नं. ३५ से ४० तक ६ कारिकाओंमें श्रथवा अध्यायके अन्त सकव्याख्यान किया गया है जैसाकि नागेहे वर्णदरी मालव हो सकेगा ! हा प्रकार यह कारिका डली दीपकन्यायसे दोनों ही तरफ अपनी प्रयोजनवत्ता और महत्वाको एक तरफ पावश्यक समाधानके द्वारा प्रयोजनको और दूसरी तरफ वक्ष्यमाण विषयक प्रोत्थापनके निर्देशको प्रकाशित करती है। अतएव स्पष्ट है कि इस कारिकाका प्रयोजन और महत्त्व असाधारण है। शब्दों का सामान्य--विशेष अर्थ विद्यावृत्तस्य-विद्या च वृत्तं च तयोः समाहारः विद्यावृत्तस्य । इस निरुक्तिके अनुसार एकवचन का प्रयोग और समुदाय का प्राधान्प समझा जा सकता है, जैसाकि समाहार इन्द्र समास विषयमें पहले कहा जा चुका है । विद्याका अर्थ ज्ञान और वृस का अर्थ चारित्र प्रसिद्ध है। सम्भति-स्थिति वृद्धि-फलोदया:-इन चारों ही शब्दों का इतरेतर धन्दू समास होता है। मम पूर्वक भ धातु से भाव क्रिया मात्र अर्थमें कृदन्त की ति (तिन् ) प्रत्यय होकर यह शब्द बनता है। सम् उपसर्ग का अर्थ समीचीन और भू धातु का अथ उत्पम होना है। अतएव मम्मति शब्द का अर्थ भले प्रकार उत्पत्ति होता है । किन्तु इसका अर्थ संभव-शक्य मी होता है जैसे कि इत्यर्थः संभवति' पद का अर्थ 'ऐसा अथ संभव है। यह होता है। यहां पर समीचीन उत्पचि और संभव ये दोनों ही अर्थ ग्रहण करने चाहिये । अर्थात् सम्यक्त्वके बिना सम्यग्दर्शनके अथवा समीचीनताके बिना ज्ञान--चारित्र भले प्रकार अमीष्ट रूपमें उत्पन्न नहीं होते अथवा उत्पम नहीं हो सकते--मोक्षमार्गरूप नहीं बनते इस तरह से दोनों ही प्रकारसे मथ करना उचित एवं संगत है। स्थिति-स्था धातु का अर्थ गतिनिवृत्ति है। इससे भी किन् प्रत्यय होकर यह शन्द पना है। निरुक्ति के अनुसार इसका अर्थ गमन न करना होता है। किन्तु इसका प्रसिद्ध अर्थ हरना, मर्यादा, परिस्थिति; स्थिरता-त्याम्य मार्ग पर स्थिर रहना आदि भी हमा करवाई।
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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