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________________ उधरम करा मुरुप कम होगी । और चकरी को लेकर जानेवाला यज्ञदर खेत पर पसार पर या कहां जा रहा है। इसके उपर गांव मुख्य कर्म हो जायेगा। इसके सिवाय कदाचित् प्रकार कारकको कर्म कारक बनाये जाने पर बह गौण कर्म और दूसरा मुल्य कर्म माना जाता है। यहां पर दर्शन गौण कर्म है और कर्णधार मुल्य कम है। क्योंकि जिस तरह पूर्वार्धमें दर्शनको कर्ता बनाकर माधुवाकी प्रामि एवं व्याप्तिकी दृष्टि से उसकी स्वतन्त्रता एवं मुख्यता दिखाई गई है उसी प्रकार उत्तरार्थमें प्राचार्य उसी पूर्णिमें कासे प्रयुक्त दर्शनको कर्म बनाकर उसीमें उसीकी छिपी हुई असाधारण योग्यताको कर्याधार कहकर कर्णधारताका वियान करना चाहते हैं। इस तरहसे उद्देश्य होनेसे दर्शन मौण, धेिय नेके कारण कर्णधार-कधिारता मुख्य कर्म होजाता है। क्योंकि दर्शनमें पाई जानेवाली कर्णधारताको ही यहाँपर अच्छी तरहसे मुख्यतया अभिव्यक्त करके बताना अभीष्ट है । जिससे यह मालुम हो सके कि शाननारित्रकी साताका नेतृत्व करने कर्णाधार बनने की योग्यता दर्शनमें ही है। ज्ञान चारित्रकी साधुवा दर्शनको साधुताका मनहरणमा किया का है, इसका महत्व करनेमें सथा असमर्थ है। तात्पर्य यह है कि पापर सम्पग्दर्शनकी प्रथम वर्णनीयताके सम्मन्धमें जो प्रश्न उपस्थित हुआ था उसके उखरमें आचागने इस कारिका द्वारा युक्तिपूर्णक यह स्पष्ट करके बता दिया। कि मोक्षमार्गमें सम्यग्दर्शनकी प्रथनता क्यों है ? संक्षेपमें हम कारिकाका आशय यह है किमात्माका दर्शन नामका एक ऐसा गुण धर्म या स्वभाव है जो कि सामान्यतया सम्पूर्ण शिण्डरूप मात्मद्रव्यको और उसके सभी गुणों और परिणमनों को व्याप्त करता है इसलिये ज्ञान और चारित्र भी उसकी व्याप्तिसे रहित नहीं है । फिरभी यहां इन दोनांका ही नाम जो लिगा गया है उसका कारण यह है कि माक्षमार्गमें ये दोनों ही उसके लिये सहपती होकर भी अन्य गुगाथोकी सापेवा सबसे धिक उपयोगी है। इस तरहसे मोक्षमार्गकी सिद्धि में तीनोंका साहचर्य। फिर भी तीन सम्यग्दर्शन ही प्रधान है। जिस तरह किसी राज्यके साधनमें यधपि राजा मंत्री और सेनापति तानो ही सहचारी हैं-मिलकर उसका संचालन करते हैं फिर भी स्वतन्त्र और नेतृत्वकै कारण उनम रामाको ही मुख्य माना जाता है। मंत्री बुद्धिमलसे उचित अनुचितको प्रकाहित करके धार सेनापति शत्र मोका विध्वंस करके राजाकी प्राज्ञाका पालन करानमें सहायक हना करते हैं, उसी प्रकार दर्शन और ज्ञान चारित्रक विषय समझना चाहिये । दर्शन राजा, प्रान मंत्री और चारित्र मनापति है। मंत्री और सेनापति जिस तरह राजाकी माझाका पालन करन मोर उसके अनुकूल ग्था अनुमार ही प्रवृत्ति किया करते हैं। वे राजाको आज्ञापित नहीं किया करने मौरन राजा ही उनका अनुकरण.या अनुसरण किया करता है। इसीप्रकार शान और चारित्र दशनको आज्ञानुसार चलते हैं और उनीका अनुकरण तथा अनुसरण करते है। परन्तु दर्शन न तो ज्ञान और चारित्रकी पाझामें ही चलता है और न उनका अनुकरण पा अनुसरण हो करता है। स्वतन्त्र है।खी बावको मधिक स्पष्ट करनेलिय प्राचायन साकि
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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