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________________ श्री सिद्धेभ्यो नमः श्रीमदाचार्य समन्तभद्र स्वामि - विराचत श्रीरत्नकरण्ड श्रावकाचार विद्यावारिधि, स्याद्वादवाचस्पति, स्याद्वादभूपण धर्मदिधाकर पंडित खूबचंद्रजी शास्त्रीकृत "रत्नत्रय - चन्द्रिका " नामकी देशीमापाटीका सहित टीकाकारका मंगलाचरण श्रीमन्तं सन्मति नत्वा तद्भार्यां च गुरुत्रयीम् । श्रावकाचारविवृर्ति कुर्वे मंगलकारिणीम् ॥ श्राचार्य श्री समन्तभद्र भगवान् रत्नत्रयरूप श्रावकधर्मका व्याख्यान करने की इच्छासे सबसे प्रथम अन्तिम तीर्थकर श्रीवर्धमान स्वामीको नमस्कार करते हैंनमः श्रीवर्धमानाय निर्धूतकलिलात्मने । सालोकानां त्रिलोकानां यद्विद्या दर्पणायते ॥१॥ प्राथ - श्रात्मास लगे हुए कलिला को जिन्होंने निकाल कर दूर कर दिया है और जिनका ज्ञान थलोक सहित तीनों लोकों को जानने के लिये दर्पण के समान है, उन श्रीमान भगवान् को नमस्कार है। विशेष- इस कारिका सम्बन्वर्षे निम्नलिखित तीन विषय विचारणीय हैं १- प्रयोजन | २ - शब्दों का सामान्य विशेष अर्थ, ३- तात्पयं । इनमें भी प्रथम प्रयोजन के सम्बन्ध में चार बातें ज्ञातव्य है । १- - प्रास्तिकता, २ - कृतज्ञता, ३-आम्नाय और ४ - मंगलकामना । आस्तिक शब्द का अर्थ "अस्ति परलोक इति मतिर्यस्यासौ शास्तिकः १ " इस निरुक्तिकें अनुसार जीवात्मा के अस्तित्व और परलोक आादिपर श्रद्धा रखनवाला हुआ करता है। मतलब यह कि जो आत्मा या जीवतन्त्रको, उसकी अप्रत्यक्ष अवस्थाओं स्वग नरक आदि सांसारिक गतियों एवं संसारातीत निर्वाण अवस्था को मानता है, उनके अस्तित्वके सम्बन्ध में जिसको पूर्ण विश्वास है, जो इनके वर्णनकी सत्यताको स्वीकार करता है; उसको कहते हैं आस्तिक तथा उस तरही मान्यता एवं श्रद्धाका ही नाम है प्रास्तिकता । -"अस्ति नास्ति दिष्ट मतिः" पाणिनीम ।
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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