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________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार ३०४ ] गौरव, दानादि, आदर-सत्कार में आसक्त होकर अधिक काल तक जीने की इच्छा मत करो क्योंकि बाह्यवस्तु भ्रम से अपने को प्रिय प्रतीत होती है। आयु का आशीर्वाद चाहने से अर्थात् मैं और जीवित रहूँ इस इच्छा से कौन मनुष्य लौकिक और विचारक जनों की हँसी का पात्र नहीं होता ? इस विकार जीविताशंसा नामक अतिचार छुड़ाने के लिए कहा गया है । अधिक जीने की इच्छा करना जीविताशंसा नामक अतिचार है। दुःसह भूख-प्यास रोगादि की वेदना के भय से शीत्र मरने की इच्छा मत करो। क्योंकि दुःख को बिना संक्लेशभाव से सहन करने वाला पूर्व उपार्जित पापकर्म का नाश करता है, किन्तु जो पुतिल पिशि मला वाहता है वह आत्मा का हनन करता है क्योंकि आत्मघात से संसार दीर्घ होता है । इस प्रकार शीघ्र मरने की इच्छा करना मरणाशंसा नामक अतिचार है । 'बाल्यावस्था में जिसके साथ धूल में खेले थे उस बचपन के मित्र के साथ अपने को स्नेहबद्ध मत करो। मोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न इस प्रकार के खोटे परिणामों से तुम्हें क्या प्रयोजन है ? तुम तो परलोक जाने के लिए तैयार हो।' समाधिकाल में मित्रों का स्मरण होना मित्रानुराग नामक अतिचार है । 'पहले इन्द्रियों के द्वारा अनुभव किये गये भोगों में प्रीतिपूर्वक मनको मत लगाओ कि मैंने इस प्रकार सुन्दर कामिनी आदि के साथ सुखोपभोग किये थे, इन्द्रिय सुखों के हढ़ संस्कारों को वासना के कारण ही यह जीव संसार में भ्रमण करता है । अर्थात् इसके भ्रमण का कारण आत्मज्ञान के संस्कार नहीं हैं किन्तु विषय-वासना के संस्कार हैं। पहले भोगे हुए भोगों को याद करना सुखानुबन्ध नामक अतिचार है। 'रोगों की तरह दुःख देने वाले भावी भोगों की आकांक्षा मत करो तप के माहात्म्य आदि से अमुक इष्ट विषय मुझे प्राप्त हो, ऐसा निदान तुम मत करो। क्योंकि इष्ट वस्तु को देने में समर्थ देवी या देवता को प्रसन्न करके उससे तत्काल प्राणहारी विष कौन मांगता है । अर्थात् समाधिपूर्वक मरण करके स्वर्ग आदि के भोगों की कामना वैसी ही है जैसे कोई वरदान देने वाले देवता को प्रसन्न करे और उससे प्रार्थना करे कि हमें ऐसा विष दो जिसके खाते ही प्राण निकल जाय । क्योंकि भोग विष से कम भयानक नहीं हैं ।' आगामी भोगों की चाह करना निदान नामक अतिचार है।
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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