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________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार २५२ ] ग्रहणविसर्गास्तरणान्यवृष्टमृष्टान्यनावरास्मरणे । यत्प्रोषधोपवासन्यतिलंधनपंचकं तविदम् ॥२०॥ प्रोषधोपवासस्य व्यतिलंघनपंचकमतिचारपंचकं । तदिदं पूर्वार्धप्रतिपादित. प्रकारं । तथा हि । ग्रहणविसर्गास्तरणानि त्रीणि । कथंभूतानि ? अदृष्टमष्टानिदृष्टं दर्शनं जन्तवः सन्ति न सन्तीति वा चक्षुषाबलोकनं मष्टं मृदुनोपकरणेन प्रमार्जनं तदुभी न विद्यते येषु ग्रहणादिषु तानि तथोक्तानि । तत्र बुभुक्षापोडितस्यादृष्टमृष्टस्याहदादि पूजोपकरणस्यात्मपरिधानाद्यर्थस्य च ग्रहणं भवति । तथा अष्टमृष्टायां भूमौ मूत्रपुरीषादेरुत्सर्गो भवति । तथा अदृष्टमष्टे प्रदेशे आस्तरणं संस्तरोपक्रमो भवतीत्येतानि श्रीणि । अनादरास्मरणे च द्वे । तथा आवश्यकादौ हि बुभुक्षा पीडितत्वादनादरोऽनैकाग्रतालक्षणमस्मरणं च भवति ।।२०।। प्रोषधोपवास के अतिचार कौन कौन से हैं, यन् घट्ले हैं (यत्) जो (अदृष्टमृष्टानि) बिना देखे तथा बिना शोधे (ग्रहणविसर्गास्तरणानि) पूजा आदि के उपकरणों को ग्रहण करना, मलमूत्रादि को छोड़ना और संस्तर आदि को बिछाना तथा (अनादरास्मरणे) अनादर और अस्मरण हैं ( तदिदं ) चे ये (प्रोषधोपवासव्यतिलंघनपञ्चक) प्रोषधोपवासव्रत के पांच अतिचार हैं। टोकार्थ यहाँ पर जीव जन्तु हैं कि नहीं ? इस प्रकार चक्षु से अवलोकन करना दृष्ट कहलाता है और कोमल उपकरण से परिमार्जन करना मष्ट कहलाता है । जिसमें ये दोनों न हों वह अष्टमष्ट कहलाता है । अष्टमष्ट का सम्बन्ध-ग्रहण, विसर्ग, आस्तरण इन तीनों के साथ है। इसलिए अदृष्टमष्ट ग्रहण, अष्टमृष्ट विसर्ग, अदृष्टमष्टास्तरण ये तीन अतिचार हैं। प्रदृष्टमष्ट ग्रहण अतिचार उसके होता है जो भूख से पीड़ित होकर अर्हन्तादि की पूजा के उपकरण तथा अपने वस्त्रादि को बिना देखे और . बिना शोधे ग्रहण करता है । अदृष्टमष्टविसगं जो भूख से पीड़ित होने के कारण बिना देखी बिना शोधी भूमि पर मत्रमूत्रादि विसर्जित करते हैं | अष्टमष्टास्तरण भूख से पीडित होकर बिना देखो-बिना शोधी भूमि पर बिस्तर आदि बिछाना । इन तीन के सिवाय अनादर और अस्मरण ये दो अतिचार और हैं । यथा-भूख से पीड़ित होने के कारण आवश्यक कार्यों में आदर नहीं करना, उपेक्षा का होना अनादरनामक अतिचार है और चित्तविक्षिप्त होना एकाग्रता नहीं होना अस्मरण नामका अतिचार है ।
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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