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________________ रत्नकरपड आवकाचार चतुराहारविसर्जन मुपवासः प्रोषधः सद्भुक्तिः । स प्रोषधोपचासो यदुपोष्यारम्भमाचरति ॥१९॥ चत्वारश्च ते आहाराश्चाशनपानखाद्यले ह्यलक्षणाः। अशनं हि भक्तमुद्गादि, पानं हि पेयमथितादि, खाद्यं मोदकादि, लेह्यरब्रादि, तेषां विसर्जनं परित्यजनमुपवासोऽभिधीयते । प्रोषधः पुनः सकृद्भक्तिर्धारणकदिने एकभक्तविधानं । यत्पुनरुपोष्य उपवास कृत्वा पारणकदिने आरम्भं सकृद्भुक्तिमाचरत्यनुतिष्ठति स प्रोषधोपवासोऽभिधीयते इति ॥ १६ ॥ प्रोषधोपवास का लक्षण कहते हैं [चतराहारविसर्जनं] चार प्रकार के आहार का त्याग करना [ उपवास: ] उपवास है। [सकृद्भुक्तिः] एक बार भोजन करना [प्रोषध:] प्रोषध है और [यत् ] जो [उपोष्य] उपवास करने के बाद पारणा के दिन [ आरम्भं आचरति ] एक बार भोजन करना है [सः] वह [प्रोषधोपवास:] प्रोषधोपवास है । टोकार्थ--आहार चार प्रकार का है-अशन, पान, खाद्य, लेह्य । भात, मूग आदि अशन कहलाते हैं । छाछ आदि पीने योग्य वस्तु पेय कहलाती है । लड्ड आदि खाद्य है। रबड़ी आदि चाटने योग्य पदार्थ लेह्य हैं । इन चारों प्रकार के आहार का त्याग करना उपवास कहलाता है। एक बार भोजन करने को प्रोषध कहते हैं। धारणा के दिन एकाशन और पर्व के दिन उपवास करना पुन: पारणा के दिन एकाशन करना प्रोषधोपवास कहलाता है। विशेषार्थ---समन्तभद्रस्वामी प्रोषधोपवास का लक्षण एवं उपवास के दिन करने योग्य क्रिया और न करने योग्य क्रियाओं का वर्णन कर चुके हैं। अब यहां पर पुन: प्रोषधोपवास, प्रोषध और उपवास का लक्षण लिख रहे हैं। क्योंकि यहां पर प्रोषध का लक्षण भिन्न है । अन्य ग्रन्थों में प्रोषध का अर्थ पर्व-अष्टमी, चतुर्दशी लिखा है । अतः पर्व के दिन किया हुआ उपवास प्रोषधोपवास कहलाता है। यहां पर धारणा पारणा के दिन एक बार भोजन की चर्चा की गई है। सोलह पहर के पश्चात वह गृहस्थ अन्य आरम्भादिक कार्य करने के लिए स्वतन्त्र हो जाता है ।।१६।।१०।। अथ केऽस्यातीचाराइत्याह
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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