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________________ २४८ ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार सेवन का त्याग करना चाहिए। यह सब उपलक्षण है अतः इसमें गीत, नृत्यादि राग के सभी कारणों का त्याग भी आ जाता है । विशेषार्थ --- उपवास करने का मूल उद्देश्य कषाय, इन्द्रिय विषय और आहार का त्याग करना है । मात्र आहार के त्याग करने और विषय-कषायों के त्याग न करने को तो लंधन कहा है, वह उपवास नहीं कहलाता, इसलिए आचार्य ने उपवास के दिन न करने योग्य कार्य भी बतलाये हैं । उपवास के दिन हिंसादि पंच पापों का त्याग करें और आभूषणों से शरीर को सजाने का त्याग करें, तथा गृहकार्य के निमित्त से होने घाले आरम्भ को और व्यापार के निमित्त से होने वाले आरम्भ को छोड़ें, सुगन्धित केशर क'रादि तथा इत्र गन्ध आदि के ग्रहण का त्याग करें। यहां पर स्नान शब्द से तेल तथा उद्वर्तन आदि लगाकर विशेषरूप से स्नान का त्याग समझना चाहिए। शुद्ध प्रासुक जल से स्नान का निषेध नहीं है सयौगि बिना हान ने हिन्द भरधामनी अभिषेक-पूजन आदि क्रिया नहीं हो सकती है। नेत्रों में अंजन आदि न लगावे, नस्य न सूघे; इसी प्रकार और भी पंचेन्द्रिय के भोगों का त्याग करे, क्योंकि इन्द्रियों के दर्प को नष्ट करने के लिए, प्रमाद-आलस्य को रोकने के लिये, आरम्भादि से विरक्त होने के लिए, धर्म मार्ग में दृढ़ रहने के लिए, स्पर्शन और जिह्वा इन्द्रियों को वश में करने के लिए तथा उपसर्ग-परीषह सहन करने के लिए उपवास किया जाता है। अपनी प्रशंसा एवं लाभ अथवा परलोक में राज्यसम्पदा आदि की प्राप्ति के लिए उपवास नहीं किया जाता है। विषयों का अनुराग घटाने के लिये और आत्मा की शक्ति बढ़ाने के लिए उपवास करने से रस आदि की लम्पटता नष्ट हो जाती है, निद्रा पर विजय प्राप्त होती है । इस प्रकार उपवास का माहात्म्य जानकर शक्ति के अनुसार उपवास करना चाहिए ।।१७ ।१०७।। एतेषां परिहारं कृत्वा कि तदिदनेऽनुष्ठातव्यमित्याहधर्मामृतं सतृष्णः श्रवणाभ्यां पिबतु पाययेद्वान्यान् । ज्ञानध्यानपरो वा भवतूपवसन्नतन्द्रालुः ॥ १८ ॥ उपवसन्नुपवासं कुर्वन् । धर्मामृतं पिबतु धर्म एवामृतं सकलप्राणिनामाप्यायकत्वात् तत् पिबतु । काभ्यां ? श्रवणाभ्यां । कथंभूतः ? सतृष्णः साभिलाषः पिबन न पुनरुषरोधादिवशात् । पाययेद वान्यान् स्वयमेवावगतधर्मस्वरूपस्तु अन्यतो धर्मामृत
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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