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________________ रत्नकरण्ड थावकाचार परिचेतव्यं वृद्धि नेतव्यं । कि तत् ? सामायिकं 1 क्व ? एकान्ते स्त्रीपशुपाण्डुकिविवजिते प्रदेशे । कथंभूते ? निाक्षेपे चित्तव्याकुलतारहिते शीतवातदंशमशकादिबाधावजितः इत्यर्थः इत्थंभूते एकान्ते । क्व ? वनेषु अटवीषु, वास्तुषु च गृहेषु, चैत्यालयेषु च अपिशब्दागिरिगह्वरादिपरिग्रहः । केन चेतव्यं ? प्रसन्नधिया प्रसन्ना अविक्षिप्ताधीर्यस्यात्मनस्तेन अथवा प्रसन्नासौधीश्च तया कृत्वा आत्मना परिचेतव्यमिति ।। ६ ।। आगे इस प्रकार के समय में होने वाला जो सामायिक पांच प्रकार के पापों से सम्पूर्णरूप से निवृत्त होने रूप लक्षण से युक्त है उसकी उत्तरोत्तर वृद्धि करते रहना चाहिए, यह कहते हैं (सामायिक) वह सामायिक (प्रसन्नधिया) निर्मल बुद्धि के धारक श्रावक के द्वारा (एकान्ते) स्त्री, पशु तथा नपुसकों से रहित प्रदेश में ( निक्षेिप ) चित्त में चञ्चलता उत्पत्न करने वाले कारणों से रहित स्थान में (वनेषु) वनों में (वास्तुप च) मकानों में ( वा ) अथवा ( चैत्यालयेषु अपि च ) मन्दिरों में भी ( परिचेतव्यं ) बढ़ाने के योग्य है। टीकार्थ-सामायिक के लिए एकान्त स्थान होना चाहिए । एकान्त का अर्थ है, जिस स्थान में स्त्री, पशु और नपुंसक आदि का आवागमन न हो। निक्षिपअर्थात् चित्त को व्याकुल करने वाले शीत, वायु तथा डांस मच्छर आदि की बाधा से रहित हो, एकान्त स्थान चाहे अटवी हो या घर, देव स्थान अथवा अपि शब्द से पर्वत, गुफा आदि कोई भी स्थान हो वहां पर प्रसन्नचित्त होकर सामायिक करना चाहिए । प्रसन्नधिया शब्द का 'प्रसन्ना-अविक्षिप्ता धीर्यस्य स प्रसन्नधीस्तेन' इस प्रकार बहब्रीहि समास और 'प्रसन्ला चासौधीश्च इति प्रसन्नधीस्तया' इस प्रकार कर्मधारय समास भी होता है । इस विशेष्य और हेतु को बतलाया है । विशेषार्थ--आचार्य ने चित्त की चंचलता के कारणों से रहित स्थान को ही सामायिक के योग्य कहा है। सामायिक करने वाला स्वयं ऐसा स्थान चुने कि जहां पर किसी भी प्रकार के उपद्रव उत्पातादि की सम्भावना न हो तथा किसी भी प्रकार से चित्त को चंचल करने वाले कारण उपस्थित न हों। यदि प्रसंगवश कोई उपद्रव उपस्थित हो भी जाय तो समताभाव से सहन करना चाहिए IIEI
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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