SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३२ ] सावधानी से कार्य करते रहें, यह रूपाभिव्यक्ति नामका अतिचार है । स्वयं मर्यादा के भीतर रहकर मर्यादा के बाहर न जा सकने के कारण प्रयोजनवश सीमा के बाहर काम करने वालों को सावधान करने के लिए पत्थर आदि फेंकना पुद्गलक्षेप नामका अतिचार है । व्रत की अपेक्षा रखते हुए एक अंश के भंग को अतिचार कहते हैं । इनमें पहले के तीन अतिचार तो मायावीपने के कारण हैं, और अन्त के दो अतिचार अज्ञान से या उतावलेपन से होते हैं || ६ || ३६ | एवं देशावकाशिकरूपं शिक्षावृतंव्याख्यायेदानीं सामायिकरूपं तद्व्याख्या तुमाह रत्नकरण्ड श्रावकाचार आसमयमुक्तिमुक्तं पञ्चाघानामशेषभावेन । सर्वत्र च सामयिकाः सामयिकं नाम शंसन्ति ॥७॥ 1 सामयिकं नाम स्फुटं शंसन्ति प्रतिपादयन्ति । के ते ? सामयिकाः समयमागमं विन्दन्ति ये ते सामयिका गणधरदेवादयः । किं तत् ? मुक्त मोचनं परिहरणं यत् तत् सामयिकं । केष मोचनं ? पंचाघानां हिंसादिपंचपापानां । कथं ? आसमयमुक्ति वक्ष्यमाणलक्षणसमयमोचनं आ समन्ताद्वयाप्यगृहीतनियमकालमुक्ति यावदित्यर्थः । कथं तेषां मोचनं ? अशेष भावेन सामस्त्येन न पुनर्देशतः । सर्वत्र च अवधेः परभागे च । अनेन देशावकाशिकादस्य भेदः प्रतिपादितः ||७|| इस प्रकार देशावकाशिकरूप शिक्षावृत का व्याख्यान कर अब सामायिकरूप शिक्षावृत का वर्णन करने के लिए कहते हैं ( सामयिका : ) आगम के ज्ञाता गणधर देवादिक, ( सर्वत्र च ) सब जगह मर्यादा के भीतर और बाहर भी ( अशेषभावेन ) सम्पूर्णरूप से ( पञ्चाघानां ) पांच पापों का ( आसमयमुक्ति ) किसी निश्चित समय तक ( मुक्त ) त्याग करने को ( सामयिकंनाम) सामायिक नामका शिक्षावृत ( शंसन्ति ) कहते हैं । टोकार्थ - निश्चित समय की अवधि तक पंच पापों का पूर्णरूप से त्याग करने को गणधरदेवादि ने सामायिक नामक शिक्षावृत कहा है। देशावकाशिकवूत में मर्यादा के बाहर क्षेत्र में पंच पापों का पूर्णरूप से त्याग होता है । किन्तु सामायिक शिक्षावृत में मर्यादा के भीतर-बाहर दोनों ही क्षेत्रों में पंच पापों का पूर्ण त्याग होता है, इस प्रकार से देशावकाशिक की अपेक्षा सामायिक शिक्षावृत में कहा गया है ।
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy