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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
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तथतदपितस्त्याज्यमित्याह
अल्पफल बहुतिघातान्मलकमााणि शृंगवेराणि । नवनीतनिम्बकुसुमंकैतकमित्येवमवहेयम् ॥३६॥४011
'अवहेयं' त्याज्यं । किं तत् ? 'मूलक' । तथा 'गवेराणि' आर्द्र काणि । कि विशिष्टानि ? 'आर्द्राणि' अशुष्काणि । तथा नवनीतं च । निम्बकुसुममित्युपलक्षणं सकलकुसुमविशेषाणां तेषां। तथा कैतकं केतक्या इदं केतकं गुधरा इत्येवं, इत्यादि सर्वमबहेयं । 'कस्मात् अल्पफलबहुविधातात्' । अल्पं फलं यस्यासाबल्पफलः, बहुनां सजीवानां विधातो विनाशो बहुविघातः अल्पफलश्चासौ बहुविघातश्च तस्मात् ॥३६॥
इसके सिवाय श्रावकों के द्वारा और भी कुछ वस्तुएँ त्यागने योग्य हैं, यह कहते हैं
(अल्पफलबहुविघातात्) अल्पफल और बहुत अस जीवों का विघात होने से (मूलक) मूली, ( आद्राणि ) गीला (शृगवेराणि ) अदरक ( नवनीतनिम्बकुसुमं ) भक्खन, नीम के फूल और ( कैतकं ) केतकी-केवड़ा के फूल तथा ( इति एवं ) इसी प्रकार के अन्य पदार्थ भी श्रावकों के द्वारा (अवहेयम्) छोड़ने योग्य हैं ।
टोकार्थ-मूली, गीला अर्थात् बिना सूखा अदरक तया उपलक्षण से आल, सकरकन्द, गाजर, अरबी इत्यादि मक्खन, नीम के फूल, उपलक्षण से सभी प्रकार के फल तथा केवड़ा के फूल इसी प्रकार और भी अन्य ऐसे पदार्थ जिनके सेवन से फल तो अल्प हो और बहुत जीवों का घात हो, वे छोड़ने योग्य हैं।
विशेषार्थ-जिन बस्तुओं के खाने से फल तो थोड़ा होता है अर्थात जितना समय खाने में लगता है उतने समय तक ही स्वाद आता है, और अस जीवों का धात बहुत होता है वे तो त्याज्य हैं ही। परन्तु जिनके सेवन से अनन्त स्थावर काय का घात होता है ऐसे—'गवेरमूलकहरिद्रानिम्बकुसुमादीन्यनन्तकायव्यपदेशाहाणि एतेषाभपसेवने बहघातोऽल्पफलमितितत्परिहार: श्रेयात्' अदरक, मूली, गीली हल्दी, घुइयाँ आदि भी त्याज्य हैं । 'आर्द्राणि' शब्द का अर्थ अशुष्काणि जानना चाहिए इससे यह ज्ञात होता है कि जो अदरक स्वतः स्वभाव से सूखकर सौंठ रूप में परिवर्तित हो गया है, उसे यती मनुष्य ले सकता है । मूली, अदरक, आलू, गाजर, सकरकन्द आदि में