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________________ १५४ ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार विकल्प के आने पर उस वस्तु को किसी राजकीय स्थान में जमा करा देनी चाहिए और सूचना प्रसारित कर देनी चाहिए । पूज्यपादस्वामो ने भी जिससे दूसरे को पीड़ा पहुँचे और राजा दण्ड दे, ऐसे मनाय छोरे नुए. बिना दिये हुए, पराये द्रव्य को नहीं लेना अचौर्याणुव्रत कहा है । अमृतचन्द्राचार्य ने प्रमाद के योग से बिना दी हुई वस्तु के ग्रहण करने को चोरी कहा है। यहाँ पर प्रमाद योग की अनुवृत्ति है, जिसका अर्थ होता है चोरी के अभिप्राय से बिना दी हुई वस्तु का ग्रहण चोरी है और उसका त्याग अचौर्यनती करता है । किन्तु गृहस्थ तो अचौर्यबती नहीं होता, अचौर्याणु प्रती होता है। मुनिगण सर्व साधारण के भोगने के लिए पड़ी हुई जल और मिट्टी के सिवा बिना दी हुई कोई भी वस्तु ग्रहण नहीं करते । किन्तु गृहस्थ के लिए इस प्रकार का त्याग सम्भव नहीं है । इसलिए गृहस्थ ऐसी बिना दी हुई परायी वस्तु को ग्रहण नहीं करता जिसके ग्रहण करने से चोर कहलाये और राजदण्ड का भागी हो । आचार्य सोमदेव ने भी सर्व भोग्य जल, तृण आदि के अतिरिक्त बिना दी हुई परायी वस्तु के ग्रह्ण को चोरी कहा है। किन्तु गृहस्थ इस प्रकार का त्याग नहीं कर सकता इसलिए उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए कहा है कि यदि कोई ऐसे कुटुम्बी मर जावें जिनका उत्तराधिकार हमें प्राप्त है तो उनका धन बिना दिये भी लिया जा सकता है । यदि जीवित है तो उनकी आजा से लिया जा सकता है । अपना धन हो या पराया जिसके लेने में चोरी का भाव होता है, वह चोरी है। इसी तरह जमीन वगैरह में गडा धन राजा का होता है क्योंकि जिस धन का कोई स्वामी नहीं है, उसका स्वामी राजा होता है। इस तरह आचार्य सोमदेव ने अचौर्याणुव्रत को अच्छा स्पष्ट किया है, इसी का अनुसरण आशाधरजी ने किया है ।। ११ ।। ५७ ।। तस्यैदानीमति चारानाहचौरप्रयोगचौरादानविलोपसवशसन्मिश्राः । हीनाधिकविनिमानं पञ्चास्तेयेव्यतीपाताः ॥१३॥१३॥ 'अस्तेये' चौर्यविरमणे । 'व्यतीपाता' अतीचाराः पंच भवन्ति । तथा हि । चौरप्रयोगः चोरयतः स्वयमेवान्येन वा प्रेरणं प्रेरितस्य वा अन्येनानुमोदनं । चौरार्थादानं च अप्रेरितेनाननुमतेन च चोरेणानीतस्यार्थस्य ग्रहणं । विलोपश्च उचितन्यायादन्येन प्रकारेणार्थस्यादानं विरुद्ध राज्यातिक्रम इत्यर्थः । विरुद्ध राज्ये स्वल्पमूल्यानि
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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