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________________ १४४ ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार विशेषार्थ - हिंसाचार प्रकार की है । संकल्पी, आरम्भी, उद्योगी और विरोधी। मैं इस जीव को मारू" इस प्रकार के विचार से किसी प्राणी को मारना संकल्पी हिंसा कहलाती है । गृहस्थी सम्बन्धी कार्यों को करते समय जो हिंसा होती है। उसे प्रारम्भी हिंसा कहते हैं, कृषि तथा अन्य उद्योग धन्धों से होने वाली हिंसा उद्योगी हिंसा कहलाती है और शत्रु आदि के द्वारा अपने ऊपर आक्रमण होने पर अपने बचाव के लिए जो हिंसा होती है उसे विरोधी हिंसा कहते हैं। इन चार प्रकार की हिंसाओं में अहिंसा व्रत का धारक केवल संकल्पी हिंसा का ही त्यागी होता है । दयालु ती श्रावक संकल्प पूर्वक स जीवों का घात न स्वयं करता है न दूसरों से कराता है और न घात करने वाले की मन-वचन-काय से प्रशंसा ही करता है । जो कोई दुष्ट बैरईर्ष्यादि से मारना चाहे या धनादि का हरण करना चाहे तो उसका भी घात करना नहीं चाहता | कोई धनादि देकर दूसरे को मरवाना चाहे तब भी यह किसी प्राणी को मारने का संकल्प नहीं करता । तथा रोगादि आपत्तियाँ आने पर जीवन के लोभ से भी किसी त्रस जीव को नहीं मारता, यह हिंसा कर्म से अत्यन्त भयभीत रहता है | आरम्भादि कार्य यत्नाचारपूर्वक करते हुए यदि कोई जीव अकस्मात् मर भी जाय तो भी वह हिंसा का भागी नहीं होता । उमास्वामी आचार्य ने 'तत्त्वार्थ सूत्र में हिंसा का लक्षण बतलाया है— 'प्रमत्तयोगात् प्राणश्यपरोपणं हिंसा' अर्थात् प्रमाद के योग से प्राणों का घात करना हिंसा है । अमृतचन्द्र स्वामी ने कहा है " यत्खलु कषाययोगात्प्राणानां द्रव्यभावरूपाणाम् । व्यपरोपणस्य करणं सुनिश्चिता भवति सा हिसा ।।" अर्थ- कषाय के आवेश से इन्द्रियादि द्रव्य प्राण और ज्ञानादि भाव प्राण का वियोग करने से निश्चितरूप से हिंसा होती है । आत्मा में रागादि भावों की उत्पत्ति नहीं होना अहिंसा है और रागादिभावों की उद्भुति होना हिंसा है ऐसा जिनागम का संक्षेप है पश्चात् दूसरे की हिंसा हो न हो, निश्चित नहीं है । इसलिए गृहस्थ को यथा शक्ति तीन, छह अथवा नौ कोटियों से हिंसा- पाप का त्याग करना चाहिए । इस जगत में सर्वत्र जीव भरे हैं। जल, थल, आकाश का कोई भी ऐसा स्थान नहीं है जहाँ सूक्ष्म या स्थूल जीव न हों। और वे हमारी चेष्टाओं से हाथ पैर
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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