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________________ १३८ ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार सकलं विकलं चरणं, तत्सकलं सर्वसंग विरतानाम् । अनगाराणां विकलं सागाराणां ससंगानाम् ॥ ४ ॥ हिंसादिविरतिलक्षणं यच्चरणं' प्रावप्ररूपितं तत् सकलं विकलं च भवति । तत्र 'सकल' परिपूर्णं महाव्रतरूपं । केषां तद्भवति ? 'अनगाराणां' मुनीनां । किविशिष्टानां 'सर्व संगविरतानां' बाह्याभ्यन्तरपरिग्रहरहितानां । 'विकल' परिपूर्ण अणुव्रतरूपं । केषां तद्भवति 'सागराणां' गृहस्थानां । कथम्भूतानां ? 'ससंगानां' संग्रन्थानाम् ||४|| ऐसा चारित्र दो प्रकार का है, यह कहते हैं (तत्) वह (चरण) चारित्र ( सकल विकल ) सकल चारित्र और विकल चारित्र के भेद से दो प्रकार का है । उनमें से ( सकलं ) सम्पूर्ण चारित्र ( सर्वसंगविरतानां ) समस्त परिग्रहों से रहित ( अनगाराणां ) मुनियों के और ( विकलं ) एकदेश चारित्र ( ससंगानां ) परिग्रहयुक्त ( सागाराणां ) गृहस्थों के (भवति) होता है । टीकार्थ - हिंसादि पापों के त्यागरूप लक्षण से युक्त जिस चारित्र का पहले वर्णन किया है वह चारित्र सकल और विकल के भेद से दो प्रकार का होता है । उनमें सकलचारित्र परिपूर्ण महाव्रतरूप कहा है, जो बाह्य और अभ्यन्तर समस्त परिग्रह के त्यागी मुनियों के होता है । विकलचारित्र देशचारित्ररूप है, जो पंच अणुव्रत के धारक परिग्रह से सहित गृहस्थों के होता है । विशेषार्थ - आत्मा के चारित्र गुण का घात करने वाला चारित्रमोहनीय कर्म है | चारित्र के दो भेद हैं- देशवारित्र और सकलचारित्र | सकलचारित्र का घात करने वाली प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ ये कर्म प्रकृतियाँ हैं । और विकलचारित्र - देशचारित्र का घात करने वाली अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ ये कर्म प्रकृतियाँ हैं । जब किसी सम्यग्दृष्टि जीव के अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ का क्षयोपशम होता है तब उस जीव के हिंसादि पाँच पापों के एकदेशत्यागरूप अणुव्रत होता है । यह विकलचारित्र कहलाता है और जब किसी सम्यक्त्वी के प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ का क्षयोपशम होता है तब उसके पंच पापों का पूर्ण त्याग हो जाने से सकलचारित्र होता है । सकलचारित्र के धारक गृह कुटुम्ब परिग्रह से रहित निर्ग्रन्थ मुनिराज होते हैं तथा विकलचारित्र परिग्रह से सहित गृहस्थ
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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