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________________ ११८ ] रत्नकरण्ड धावकाचार सर्वोत्कृष्ट सुख और ज्ञान के वैभव से सहित तथा (विमलं) द्रव्यकर्म और भावकर्मरूप मल से रहित (शिव) मोक्ष को (भजन्ति) प्राप्त होते हैं । टोकार्थ-- 'दर्शनं शरणं संसारापायपरिरक्षकं येषां ते' सम्यग्दर्शन ही जिनके शरण है यानी संसार के दुःखों से रक्षा करने वाला है । अथवा 'दर्शनस्य शरणं रक्षणं यत्र ते' जिनमें सम्यग्दर्शन की रक्षा होती है वे दर्शन शरण कहे जाते हैं । ऐसे दर्शन के शरणभूत सम्यग्दृष्टि जीव ही शिव-मोक्ष का अनुभव करते हैं । वह मोक्ष अजरवृद्धावस्था से रहित है, अरुज-रोग रहित है, अक्षय-जिसका कभी भी क्षय नहीं होता ऐसे अनंत चतुष्टय के क्षय से रहित है । अव्याबाध है-जो अनेक प्रकार की बाधा-दुःख के कारणों से रहित हैं । विशोक भयाशंक है-शोक, भय, तथा शंका से रहित है, काष्ठागत सुख विद्या विभव है जो परमप्रकर्षता को प्राप्त हुए सुख और ज्ञान के वैभव से सहित है तथा विमल है-द्रव्यकर्म, भाषकर्मरूप मल से रहित है। विशेषार्थ-सम्यग्दर्शन के दो फल हो सकते हैं, जिनका वर्णन इस अध्याय में बतलाया गया है। एक तो कर्म से सम्बन्धित सांसारिक और दूसरा कर्म रहित संसारातीत मोक्ष । कर्मों का और संसार का सम्बन्ध नियतरूप है, जब तक कर्म हैं तब तक संसार है और संसार है तब तक कर्म हैं। __कर्म तीन प्रकार के हैं-द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म । इनमें पापकर्म और उनके फलोपभोग के लिए अधिष्ठानरूप नोकर्म सभी दृष्टि से अनिष्ट है। तथा पुण्य कर्म और उनके योग्य विपाकरूप नोकर्म सब इष्ट हैं। किन्तु परमार्थतः अन्ततोगत्वा मोक्ष तो सभी कर्मों के अभावरूप ही कहा गया है। ऊपर कर्म से सम्बन्धित जिन अभ्युदय पदों के निमित्त से सम्यग्दर्शन का अन्तिम कर्म रहित संसारातीत परमनिश्रयस्रूप जो फल प्राप्त होता है, उसका यहां वर्णन किया जा रहा है। जीवन्मुक्त आर्हन्त्य अवस्था प्राप्त करने वाले को उसी भव से परनिर्वाण की प्राप्ति होती है । ___ जब तक मोह का साम्राज्य है तब तक जन्म-मरण की परम्परा भी अक्षण्ण बनी रहती है। किन्तु इसके विरुद्ध जव यह जीव योग्य कारणों के मिलने पर अपनी स्वाधीन और पराधीन स्थिति को समझकर लक्ष्यबद्ध हो जाता है अर्थात् सम्यग्दृष्टि बन जाता है, उसी समय उसकी जन्म-मरणरूप परम्परा भी सीमित हो जाती है।
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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