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________________ [ अन्य सूची-पंचम भाग । सागर बायीस तम् अायतु लही सुख समुद्र मोवंत । .. धागलि मुगस्य वधु वर थई सुभ अवंत गुण क्रीडत ॥३१।। वहा-: सकलकीरति प्रादि सह गुरएकीति गुणमाल । वादिभुषण पट्ट प्रगटियो रामकीति विशाल ॥१॥ ब्रह्म हरखा परसादयी जयकीति कही सार । कोट नगरि कोडामगि प्रादिनाथ भवतार ॥२॥ संवत् सोल चज उत्तरि सीता तशी गुण वेल्ल । ज्येष्ठ सुदि तेरस बुधि रत्ती भरणी कर' गेल ॥३॥ भाय भगति भरिण सुरिण सीता सती गुण जेह । जयकीरति सूरी कही सूख सूज्यो पलाहि तेह ॥४।। . सुद्ध थी सीता शील पताका। .. गुरण बेल्ल याचार्य जयकीति विरचिता। संवत् १६७४ वर्षे पाषाक सुदी ७ गुरौ श्री कोट नगरे स्वज्ञानावरणी कर्मयार्थ प्रा० श्री जयकोतिना स्वहस्ताभ्यां लखितेयं । ६२३३. सीताहरणरास- जयसीगर। पत्रसं० १२६ । पाsex५ इच। भाषा-हिन्दी (पद्य) । विषय-कथा ! र०काल सं० १७३२ वैशाख सुदी २। लेकाल सं० १७४५ वैशाख सुदी १ । पूर्ण । वेष्टन सं०२३० । प्राप्ति स्थान—दि जैन अग्रवाल मन्दिर उदयपुर । विशेष—इस के कुल ८ अधिकार हैं। अन्त में रामचन्द्र का मोक्ष गमन का वर्णन है । ग्रंथ का प्रावि अन्त भाग निम्न प्रकार हैप्रारम्म सकल जिनेश्वर पद नमूसारद समरू माय । गणधर गुरु गौतम नमुजे त्रिभुवन वंदित पाय ।।१।। महीचन्द गुरु पद नमी रामचन्द्र घर नारि । सीता हरसा जहू कह सांभल ज्यो नरमारि ॥२२॥ अन्त में अन्य प्रशस्ति निम्न प्रकार है रामचन्द्र मुनि केवल थइनो सिद्ध थयो भवतार जी। ते गुण कहते पार न पावे समरता सौख्य अनार जी ||१| मूलसंघ सरसलि वरगच्छ्रे बलात्कारगण सारजी। विद्यानंदि गुरु गोयम सरसो प्रणमूवारोबार जी ॥२॥ गंधार नगरे प्रत्यक्ष प्रतिशय कलियुगे 2 मनोहारजी। तेह तो पाट मलिभूषण विद्यामा वहिपार जी ॥३॥ लक्ष्मीचन्द्र ने अनुक्रमे जाणो लक्ष्मण पंडित कायजी । बीरचन्द्र भट्टारक वाणी सभिलतां सुखधाम जी ॥४॥ शानभूषण तस पाटे सोहै ज्ञान तणो भंडार ली। लाई वंसे उद्योतज कीधो भव्य तणो प्राधार जी ॥५॥
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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