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रास, फगु धेलि ]
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सनत्कुमार सहामणउ उत्तम गुण मरिगनउठाण । चक्रीसर चयउ सही चतुर पर्ण सोहै सपराण।
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X अन्तिम
सोलहसइ मत्तरोत्तरइ सावण सुद रोरस अवधार : उत्तराप भो सपथी विरत थकी कीधउ उद्धार ।।८२॥ . पासचन्द गुरु पाय नभी हरष घरीए रचीयउ रास । ऋषि ते ऊदो हम कहै भाइ तिहाँ बरि मंगल लछि निवास ॥५३॥ इति श्री सनत्कुमार रास समाप्तेति । संवा सरी यास मेम मुझ ।
वीरमजी सुप्रसाद थी लिखतं जटमल राम । ६२३२. सीताशोलपताकागुण बेलि -प्राचार्य जयकीति । पथसं० ३१ । भाषा-हिन्दी । विषय-कथा 1 र० काल सं० १६०४ । ले. काल सं० १६७४ । पूर्ण । वेष्टन सं०५३/१४१ । प्राप्ति स्थान-दि जैन संभवनाथ मन्दिर उदयपुर । यह मूल पांडुलिपि है।
विशेष-आदि अन्त भाग निम्न प्रकार है..... प्रारंभ-राग पासावरी
सकल जिनेश्वर पद युगल,
प्रानि हृदय कमलि धरु तेह । सिद्ध समूह गुण अरोपम मनि
प्रणमवि परवी एह ॥१।। सूरीधर पाठक मुनी राहु
आनि भगवती भुवनाधार सरस सिद्धांत समूहनि
जिन मुला प्रगटी प्रतार ॥२॥ प्रति लो वनादि माघर होय
अनि अमृत मिष्टा विस्तार । पारद उल्लाहि सहय बन्दवि
बेल्ल ज्ञान की कहि कवीसार
खीता समरण जिनवर वारी आनि सह लोक प्रति कहि वार पर पुरुष ज्यो मि इच्छयो होय तो अगन्य प्रकट करे सांच । . इम कही जब कपलावीयुतब अगम्य गई जल थामि । जय जय शब्द देव उचरि पूजि प्रणमी सीता तणा पाय । सुद्ध थई गुरु की दीक्षा लेइ सप जप' करी धर्म ध्यान । समाधि रान्यासि प्राणनि तजी स्वर्ग सोलमि थयो इन्द्र जाणि ।