________________
रास, फगु वेलि ]
[ ६४७
प्रभाचन्द्र गुरू सेहने पट्टे वाणी प्रमी रसाल जी। वादिचन्द्र बादी बहु जीत्या घर सरसति गुणपाल जी ।।६।। महीचन्द मुनिजन मनमोहन वारणी जहे यिस्तार जी । परवादीना मान मुकाया ग न करे लगार जी ।।७।। मेरुचन्द तस पाटे सोहे मोहे भविषरण मन्न जी। ध्याख्यान वाणी प्रमीय समाशी सांभला एके मन्नजी ।।। गोर महीचन्द्र शिष्म जयसागर रच्यू सीता हरण मनोहार जी। नर नारी जे भए सुचासे तस घरे जय जय कार जी।। - ह'बड बम रामा संतोषी रमादे तेहनी नार जी। तेह तरणोपुर काम गुलक्षणः गहिन ने मनोहारी तेह तम्रो आदर सीता हरण ए की मन उल्लास जी। साभलतां गातो सुख होसी सीता सील विसाल जी ॥११॥ . संवत् ससर, वत्रीसा बरसे वैशाख मुदि बीज सार जी। .. बुधवारे परिपूर्णज रच्यु सरत नयर मझार जी ।।१२।। प्रादि जिणेसुर तरणे प्रसादे पद्मावती पसाय जी। सांभलता गाता ए सहुने मन मां आनन्द थाय जी ॥१३॥ महापुराण तणे अनुसारे कीधू के ममोहार जी। कविजन दोस म येसो कोई सोध ज्यो तमे सुखकार जी । १४|| मुझ मालसूने उजमचढ्य सारदा ये मति दीध जी। तेह प्रसादे पथ एकीयो श्याम दारोज सतीष जी ॥१॥ सीता सील सगो ए महिमा गाय सह नरमार जी। भाव धरी जे गाले अनुदिन तस पर मंगलवार जी ।।१६|
भाव धरी जे भणे सुशे सीता सील विसाल ।
जयसागर इम उच्चरे पोहचे तस मन पास । इति भट्टारक महीचन्द्र शिष्य प्र. जयसागर विरचिते सीताहरणल्याने श्री रामचन्द्र मुक्ति गमन वर्णन नाम पहोत्रिकार समाप्ता । शुमं । प्रथाय थ २५५० लिखत संवत् १७४५ वैशाख सुदी १ गुरौ।
६२३४. प्रति सं० २१ पत्र सं०६६ । या० ११४५ इञ्च । ले. काल सं० १८२२ । पूर्ण । बेष्टन सं० १६६-८१ । प्राप्ति स्थान-दि० जैन मन्दिर कोटड़ियों का हूंगरपुर , . .
६२३५. सुकौशलरास-बेरणीदास । पत्र सं० १७ । प्रा० १०१X४३ च । भाषा-हिन्दी पद्य । विषय-चरित्र । र०काल । ले. काल स. १७२४ । पूर्ण । वेष्टन सं० ११८-५७1 प्राप्ति स्थान--दि० जैन मंदिर कोटडियों का डूंगरपुर । अन्तिमश्री विश्वसेन गुरू पाय नमी,
वीनवी ब्रह्म वेणीदास ।