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१६ ज्ञानाय गद्य टोका
आचार्य शुभचन्द्र के ज्ञानावि पर संस्कृत और हिन्दी की कितनी ही क्रियाएं उपलब्ध होती है। इनमें चन्द द्वारा रवित हिन्दी गद्य टीका उल्लेखनीय है । टीका का रचना काल सं० १८६० माघ सुदी २ है । टीका की भाषा पर राजस्थानी का स्पष्ट प्रभाव है। इसकी एक प्रति दि० जैन मन्दिर कोटडियान हूंगरपुर संग्रहीत है ।
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१७ चैतावरण ग्रंथ (२००२)
यह कविवर रामचरा को कृषि है जो राजस्थानी भाषा में निबद्ध है । कवि ने इसमें प्रत्येक व्यक्ति को सजग रहने की चेतावनी दी है। कृति का उद्देश्य सोते हुए प्ररियों को जगाने जा रहा है। इसमें २१ पद्म हैं जिसमें कवि ने स्पष्ट शब्दों में विषय का विवेचन किया है। भाषा भाव एवं शैली की दृष्टि से रचना उत्तम है । इसकी एक मात्र प्रति दि० जैन मन्दिर कोटा के शास्त्र भण्डार में सग्रहोत है ।
१८ परमार्थशतक (२०६६)
परमार्थं शतक भैय्या भगवतीदास की है जो प्रथम बार उपलब्ध हुई है । रचना पूर्णतः श्राध्यात्मिक है जिसकी एक मात्र पाण्डुलिपि पंचायती मन्दिर भरतपुर में संग्रहीत है 1
१६ समयसार वृति (२३०५ )
समयसार पर पं० प्रभाचन्द्र कृत संस्कृत टीका की एक मात्र पाण्डुलिपि मट्टारकीय दि० जंन मन्दिर अजमेर के शास्त्र भण्डार में उपलब्ध हुई है । प० प्रभाचन्द्र ने कितने ही ग्रंथों पर संस्कृत टीकायें लिखकर अपनी विद्वता का प्रदर्शन ही नहीं किया किन्तु स्वाध्याय प्रेमियों के लिये भी कठिन ग्रंथों के अर्थ को सरल बना दिया । श्री नाथूराम प्रेमी ने समयसार वृत्ति का " जैन साहित्य और इतिहास " में उल्लेख अवश्य किया है, लेकिन उन्हें भी इसकी पाण्डुलिपि उपलब्ध नहीं हो सकी थी। प्रस्तुत प्रति संवत् १६०२ मंगसिर मुदी की लिपिवद्ध
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की हुई है। वृति प्रकाशन योग्य है ।
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२० समयसार टोका (२३०६)
भ० देवेन्द्रकीति बामेर गादी भट्टारक थे। वे भट्टारक के साथ २ साहित्य प्रेमो भी थे । ग्रामेर भण्डार की स्थापना एवं उनके विकास में म० देवेन्द्र कीर्ति का प्रमुख हाथ रहा था। समयसार पर उनकी यह टीका यद्यपि अधिक बड़ी नहीं है । किन्तु मौलिक तथा सार गर्भित है। इस टीका से पता लगता है कि समयसार जैसे प्राध्यात्मिक प्रथ का भी इस युग में कितना प्रचार था 1 इसकी एक मात्र पाण्डुलिपि शास्त्र भण्डार दि० जैन मन्दिर अभिनन्दन स्वामी बूंदी में संग्रहीत है। इसका टीका काल संवत् १७८८ भादवा सुदी १४ है ।
२१ सामायिक पाठ भाषा (२५२१)
श्यामराम कृत साभाविक पाठ भाषा की पाण्डुलिपि प्रथम बार उपलब्ध हुई है। इसका रचनाकाल सं० १७४६ है । कृति को पाण्डुलिपि दि० जैन पंचायती मन्दिर भरतपुर में संग्रहीत है। रचना अच्छी है ।