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________________ । बाईस ) काव्य संवत् १८८४ में समाप्त हमाथा जब कवि की अन्तिम अवस्था थी । दौलतरामजी के मरने के पश्चात् जोधराज किसी समय कामा नगर में चले गये होंगे। कदि ने मामां नगर के शान के साथ ही यहां के जैन मन्दिरों का भी उल्लेख किया है। कामा उस समय राजस्थान का अच्छा व्यापारिक केन्द्र था इसलिए कितने ही विद्वान भी वहां जाकर रहने लगे थे। सूख विलास को तीनों ही प्रतियां भरतपूर के पंचायती मन्दिर के शास्त्र भण्डार में सग्रहीत हैं। सुख विलान गम्य पद्य दोनों में हो निबद्ध है । कवि ने इसे जीवन को सुखी करने वाले की संज्ञा दी है । सुख विलास इह नाम है सब जीवन सुखकार । या प्रसाद हम हूँ लहं निज प्रासम सुखकार ।। अध्यात्म चिंतन एवं योग १४ गुण विलास (१९८८) दिलास संज्ञक रचनाओं में नथमल विसाला कृत गुण विलास का नाम उल्लेखनीय है । गुण विलास के अतिरिक्त इनकी 'बोर बिलास' संज्ञक एक कृति और है जो एक गुटके में (पृष्ठ संख्या ६६२) संग्रहीत है । गुण बिलास में कवि को लघु रचनामों का संग्रह है। यह संकलन संवत् १६२२ में समाप्त हुमा था। कवि की कुछ प्रमुख रचनाओं में जीवन्धर चरित्र, नागकुमार चरित्र, सिद्धान्तसार दोषक आदि के नाम उल्लेखनीय है। वैसे कवि भरतपुर में प्रॉपार्जन के लिए पाकर रहने लगे थे और संघ के साथ श्रीमहावीरजी की यात्रा पर गये थे। १४ समयसार टीका (२२८५) • मट्टारक शुभचन्द्र १६-१७ वी शताब्दी के महान विद्वान थे। संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजरातो भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार था। मम तक शुभचन्द्र की जितनी कृतियां मिली हैं उनमें समयसार टीका का नाम नहीं लिया जाता था। इसलिए प्रस्तुत टीका को उपलब्धि प्रथम बार हई है। टीका विस्तृत है और कवि ने इसका नाम प्रध्यात्मतरंगिणी दिया है। कवि ने टीका के अन्त में विस्तृत प्रशस्ति दी है जिसके अनुसार इसका रचना काल संवत् १५७३ है। इस टोकर की एक मात्र प्रति शास्त्र महार दि. जैन मन्दिर कामां में संग्रहीत है। इसका प्रकाशन होना आवश्यक है। १५ षटपाहुड भाषा (२२५६) षट्पाहुड पर प्रस्तुत टीका पं. देवीदास छाबड़ा कृत है । जिसे इन्होंने संबत् १८०१ साबरा सुदी १३ के दिन समाप्त की थी। देवीसिंह प्राकृत, संस्कृत एवं हिन्दी के अच्छे विद्वान थे तथा भाषा टीकाए' लिखने में उन्हें विशेष रुचि थी। षट्पाहुड पर उनकी यह रीका हिन्दी पद्य में हैं। जिसमें कवि ने प्राचार्य कुन्दकुन्द के भावों को ज्यों का त्यों मरने का प्रयास किया है। भाषा, भाशेली की दृष्टि से यह टीका अत्यधिक महत्व पूर्ण है।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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