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( अधारह )
शास्त्र भण्डार वि जैन सेरहपंथी मन्दिर बौसा इस मन्दिर के शास्त्र भण्डार में हस्तलिखित ग्रथों की संख्या १५० है लेकिन संग्रह को दष्टि से भण्डार की सभी पाण्डुलिपियां महत्वपूर्ण हैं। अधिकांश ग्रथ अपभ्रश एवं हिन्दी के हैं । अपभ्रश ग्रथों में जिरायत्त चरिउ (लाखू सुकुमाल चरिः (श्रीधर) वड्छमापकहा (जयमित्तहल) भत्रिमयत्तकहा (धनपाल) महापुराण (पुष्पदंत) के नाम उल्लेखनीय हैं। हिन्दी भाषा के प्रमों में कोहरा स्थान चर्चा (प्रजयराज श्रीमाल) चिल्हरण कौपई (सारंग) प्रिय लक चौपई (समममुन्दर. सिंहासन बत्तीसी (हीर कलश) की महत्वपूर्ण पापडुलिपिमा हैं। इसी भण्डार में तत्वार्थसूत्र की एक संस्कृत टीका संवत् १५७७की पाण्डुलिपि भी उपलब्ध है।
शास्त्रमण्डार दि जैन मन्दिर लश्कर जयपुर
जयपुर के प्रत्रिकाश भास्त्र भण्डारी को सुथो इससे पूर्व चार भागों में प्रकाशित हो चुकी है लेकिन अब भी कुछ शास्त्र भण्डार बच गये हैं। दि. जैन मन्दिर लश्कर नगर का प्रसिद्ध एवं विशाल मन्दिर है। यहां का शास्त्र भण्डार भी अच्छा है तथा सुव्यवस्थित है । पाण्डुलिपियों की संख्या ८२८ है । संग्रह प्रत्याधिक महत्व पूर्ण है। यह मन्दिर वर्षों तक साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है। स्तराम साह ने अपने बुद्धिविलास एवं मिथ्यात्व खंडन की रचना इसी मन्दिर में बैठ कर की थी । केशरीसिंह ने भी वर्द्धमान पुराण ( संवत् १८२५ ) की भाषा टीका इसी मन्दिर में पूर्ण की थी। यह मन्दिर बीस पंथ आम्नाय वालो का प्राश्रय दाता था। यहां सस्कृत ग्रंथों का भी अच्छा संग्रह उपलब्ध होता है। प्रमाणनयतत्वालोक्रालंकार टीका (रत्नप्रमाणार्य) प्रात्मप्रबोष (कुमार कषि) प्राप्तपरीक्षा (विद्यानन्दि) रत्नकरण्डश्रावकाचार टीका (प्रभाच-द्र) शांतिपुराण (पं० प्रशग) ग्रादि के नाम उल्लेखनीय है । मट्टारक ज्ञानभूषण के प्रादीश्वरफाग की मंवत् १५८७ की एक सुन्दर प्रति यहां के संग्रह में है।
विषय विभाजन
प्रस्तुत प्रत्य सूची में हस्तलिखित ग्रन्थों को २४ विषयों में विभाजित किया गया है। धर्म, प्राचार स्त्र, सिद्धान्त एवं स्तोत्र तथा पूजा विषयों के पतिरिक्त पुराण, काव्य, चरित, कथा, व्याकरण, कोग, ज्योतिष, आयुर्वेद, नीति एवं मुभाषित विषों के आधार पर ग्रन्थों को पापहलिपियों का परिचय दिया गया है। इस बार संगीत. रास, फागु, दलि एवं विलास जैसे पूर्णतः साहित्यिक विषयों से सम्बन्धित ग्रन्थों का विशेष विवरण मिलेगा । जैन भण्डारों में इन विषयों के सार्वजनिक उपयोग के ग्रन्थों की पलब्धि से इन भण्डारी को सहज उपादेयता सिद्ध होती है । साहित्य की ऐसी एक भी विधा नहीं है जिस पर इन भण्डारों के अन्य नहीं मिलते हो इसलिये शोधाथियों के लिये तो ये शास्त्र भण्डार साक्षात सरस्वती के बरदान के समान है। चाहे कोई विषय हो अथवा साहित्य की कोई विधा, ग्रन्थ भण्डारों में उन पर हस्तलिखित ग्रन्थ अवश्य मिलेंगे। रास, फाग, बेलि, गीत, विलासात्मक कृतियों के अतिरिक्त चौहाल्पा, अष्टक, बारहमासा,द्वादशा, पच्चीसी, छत्तीसी, पातक, सलसई, प्रादि पचासों संख्यावाचक काव्यों का अपरिमित साहित्य इन शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध होते हैं । यही नहीं कुछ ऐसे काव्यात्मक विषय हैं जिन पर अन्यत्र इतने विशाल रूप मे साहित्य पिलना कठिन है। इनमें धमाल एवं संवादात्मक प्रमुख हैं। जैन कवियों ने अपने काव्यों की लोकप्रियता बहाने के लिये उसको नये नये नाम दिये । यह सब उनकी सूझ-जूझ का ही परिणाम है।